इंदौर- श्रमण संस्कृति के श्रेष्ठ वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज निमित्तज्ञानी संत थे और उनके हृदय में प्राणी मात्र के प्रति करुणा उदारता और लोक कल्याण की भावना समाहित थी।ये बात मंगलवार को गणिणी आर्यिका यशस्विनी माताजी ने मंगलवार को दिगंबर जैन तीर्थ स्वरूप आदिनाथ जिनालय छत्रपति नगर में आचार्य विमल सागर जी महाराज के 32वें समाधि दिवस पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए कही। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि
माताजी ने आगे कहा कि आचार्य श्री अनुशासन प्रिय महान तपस्वी थे, उन्होंने अपने साधनारत जीवन में 6000 से अधिक उपवास किये एवं उनका समूचा व्यक्तित्व अतिशय पूर्ण करुणा और वात्सल्य से परिपूर्ण था। उनमें बचपन से ही जैन धर्म और णमोकार मंत्र के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे सिद्ध पुरुष होने के साथ-साथ वास्तुविद, प्रतिष्ठाचार्य, एवं आयुर्वेद के ज्ञाता भी थे। उन्होंने मंत्रों और सिद्धि के माध्यम से हजारों लोगों के कष्टों और शारीरिक व्याधियों को दूर किया और जैन धर्म की महती प्रभावना की जैन समाज उनके उपकारों को कभी नहीं भूल सकता।
इस अवसर पर आर्यिका मनस्विनी माताजी, प्रद्युम्न पाटनी, भूपेंद्र जैन ने भी आचार्य श्री के संस्मरण सुनाते हुए उन्हें विनियांजलि अर्पित की। प्रारंभ में धर्म सभा का शुभारंभ आचार्य विमल सागर जी के चित्र के समक्ष डॉ जैनेंद्र जैन, नीलेश जैन अतुल जैन श्रीमती रजनी जैन, सरिता जैन के द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। धर्म सभा का संचालन श्रीमती सोनाली बागड़िया ने किया।
आचार्य विमलसागरजी समाधि दिवस आचार्य विमलसागरजी प्राणी मात्र के प्रति कल्याण की भावना रखते थे

