बड़ौत धर्मनगरी में हो रहा है “शीतकालीन प्रवास भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ससंघ 35 पिछि का
11 वर्षों बाद गूंज रही है धर्मनगरी बड़ौत में भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज की महामंगल मय वाणी। जी हाँ, सन् 2014 में आचार्य श्री ससंघ का चातुर्मास बड़ौत में सम्पन्न हुआ था। बड़ौत नगर के गुरुभक्त आचार्य गुरुवर को चुना नगर में लाने का अथक प्रयास करते रहे। दीर्घ अन्तराल के पश्चात् आचार्य गुरुवर का पुनः आगमन धर्मनगरी बड़ौत में हुआ तो लगा मानो दीवाली ही नगर में आ गयी हो।
बड़ौत जैन समाज के विशेष आग्रह निवेदन पर आचार्य श्री ने बड़ौत समाज को “शीतकालीन प्रवास’ का मंगलमय शुभशीष प्रदान किया ।
आज से बड़ौत के “अजितनाथ सभागार” मण्डी में “श्री रयणसार” ग्रंथ पर मंगलमय वाचना प्रवचन प्रारंभ हो रही है। प्रातः काल की बेला में भव्य श्रावक-श्राविकायें गुरु आराधना पूर्वक गुरुवर की दिव्य देशना श्रवण करेंगे।
16 दिसम्बर की प्रातः काल की धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा जब तक बीज धरती में बोया नहीं जाता तब तक वह फल प्रदान करने में समर्थ नहीं हो सकता। बीज भूमि को देखता रहे और भूमि बीज को देखती रहे, इतेने मात्र से न तो भूमि फसल प्रदान कर सकती है और नही बीज फल दे सकता है; ठीक इसी प्रकार आप भगवान को मात्र देखते रहें कभी अपना समर्पण न कर सकें तो भगवान को देखने मात्र से आप भगवान नहीं बन सकेंगे। भगवान बनने की पहली आवश्यकता है “आत्म समर्पण” अर्थात् अब “मैं जो कुछ भी करूंगा वह एक मात्र जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बतलाये गये मार्ग के अनुसार ही करूँगा अपनी स्वेच्छाचार प्रवृत्ति नहीं करूंगा” ऐसी आत्म समर्पण की भावना जहाँ जन्म लेती है वहीं से भगवान बनने की यात्रा प्रारंभ हो जाती है।
बीज को उगाने के लिए भूमि ही पर्याप्त नहीं है, भूमि भी उर्वरा होना चाहिए, ऊसर अर्थात् बंजर भूमि में बोया गया नीज नष्ट हो जाता है; ठीक इसी प्रकार, आपकी भावनायें श्रेष्ठ हैं, आपका आत्म समर्पण समीचीन है किन्तु जहाँ आपका समर्पण है वह पात्र श्रेष्ठ नहीं है तब भी आपको समर्पण का फल प्राप्त नहीं हो सकता। ध्यान रखो, जिन्होंने राग-द्वेष-मौह से रहित वीतरण भाव प्राप्त कर लिया हो, सर्वतता और हितोपदेशिता प्रगट कर ली हो ऐसे सच्चे। देव-जिनेन्द्र देव सच्चे शास्त्र एवं सच्चे गुरु निर्गन्य वीतरागी गुरु ही वास्तव में आत्म समर्पण के लिए श्रेष्ठ आश्रय करने योग्य हौं। इनकी शरण में किया गया आत्म समर्पण ही एक दिन भक्त को भगवान बना देता है।

