भारत सरकार द्वारा अगले वर्ष 2027 में पहली बार पूर्णतः डिजिटल जनगणना कराने के निर्णय लिया गया है जिस पर जैन राजनीतिक चेतना मंच, के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष काला एवं मिडिया प्रभारी राजेश जैन दद्दू एवं जैन एकता मंच के गौरव जैन ने सरकार से अनुरोध किया कि यह प्रक्रिया तभी सार्थक होगी कि इसमें जैन धर्म एवं संस्कृति को एक स्वतंत्र धार्मिक पहचान के रूप में अलग से कॉलम प्रदर्शित किया जाए।
राजेश जैन दद्दू ने बताया कि जैन धर्म भारत की वसुंधरा पर विश्व का अतिप्राचीनतम जीवंत धर्म संस्कृति है, जिसकी अपनी स्वतंत्र दर्शन-परंपरा, आचार-संहिता, साधु-संत परंपरा, मंदिर व्यवस्था, तीर्थ, क्षेत्र धार्मिक ग्रंथ और सामाजिक संरचना है। इसके बावजूद आज तक की गई जनगणनाओं में जैन समाज को कभी ‘अन्य’ श्रेणी में, तो कभी मिश्रित रूप से दर्शाया गया, जिससे जैन समाज की वास्तविक जनसंख्या,सामाजिक ज़रूरतें,नीति-निर्माण साथ ही सामाजिक-धार्मिक व राजनैतिक अधिकार भी प्रभावित हुए है।
गौरव जैन ने कहा कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान के अधिकार के अंतर्गत जैन धर्म को अलग कॉलम देना सरकार की अहम जिम्मेदारी है। सरकार डिजिटल जनगणना पारदर्शिता और सटीकता की बात करती है, तो फिर जैन समाज की सटीक गिनती से परहेज़ क्यों?
सुभाष काला ने यह भी बताया कि भारत की समंग्र जैन समाज देश के आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और नैतिक विकास में सदैव अग्रणी रहा है। बावजूद इसके, यदि जनगणना में सही आंकड़े जानकारी ही दर्ज नहीं होंगे तो समाज से जुड़े नितीगत योजनात्मक निर्णय कैसे न्यायसंगत संभव होंगे।
जैन राजनीतिक चेतना मंच ने केंद्र सरकार से मांग की कि आगामी जनगणना 2027 के धर्म कॉलम में “जैन” को स्पष्ट, स्वतंत्र और पृथक कालम विकल्प के रूप में प्रर्दशित किया जाए, ताकि आगे भविष्य में भावी पीढ़ियों के साथ कोई ऐतिहासिक अन्याय न हों सकें।
अंत में जैन राजनीतिक चेतना मंच, राष्ट्रीय जिन शासन एकता संघ, विश्व जैन संगठन जैन एकता मंच एवं भारत वर्षीय सकल जैन समाज ने कहा कि यह मांग किसी से टकराव की नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार, ऐतिहासिक सत्य और सामाजिक न्याय की है,भारत वर्षीय समंग्र जैन समाज इस विषय पर एकजुट होकर शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ आवाज़ सरकार से उठाता रहेगा

