दुर्गुणों के नाश एवं सद्‌गुणों की प्राप्ति के लिए”धर्म” आवश्यक है- भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्श सागर की महामुनिराज

बुढ़ाना समाज उमड़ा भावलिंगी संत की अगवानी में !

धर्म की शरण में आने से हमें वह प्राप्त होता है जो संसार में कहीं भी प्राप्त नहीं होता 1 । धर्म हमें वह देता है जो वचनों से नहीं कहा जा सकता, वह अनिर्वचनीय होता है। धर्म पालन करने के फल लोक में सर्वोत्कृष्ट होते हैं। यह मंगलकारी सदुपदेश मुज़फ़्फ़रनगर जनपद के बुढाना नगर में विराजमान भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ने दिया ।
07 दिसम्बर 2025 की संध्याबेला में बुढ़ाना धर्मनगरी का परम सौभाग्य जागा, जब 35 पीछीधारी संयमी साधकों के साथ “जीवन है पानी की बूंदे ” महाकाव्य के मूल रचनाकार आदर्श महाकवि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज का ससंघ आगमन हुआ ।
बुढाना नगर वासी जनों को तो मानो सम्पूर्ण पर्व-त्यौहार होली दीवाली यादि सभी एकसाथ मनाने के लिए प्राप्त हो गये हों। बुढ़ाना नगर वासी समीप के “शाहपुर” नगर से पदविहार कराते हुए विशाल चतुर्विध आचार्य संघ को अपने नगर में लेकर आये और भव्य मंगल स्वागत – अभिनंदन करते हुए आचार्य श्री का द्वार-द्वार पर पाद‌प्रक्षालन एवं आरती करते हुए अपने सौभाग्य को द्विगुणित किया।
अपार जनसमूह के उल्लास को उमड़ता देख जैन समाज के प्रतिनिधि ने कहा – “आज तो हमारे जन्मों-जन्मों का पुण्य एकत्रित होकर उदय में आया है जो समवशरण की भाँति भावलिंगी संत के ससंघ सानिध्य हमें प्राप्त हुआ
है।” आचार्यश्री ने अपने सम्बोधन में कहा- धर्म हमारे जीवन से दुर्गुणों को हटाकर सद्‌गुणों की फसल पैदा करता है। जिसमें आत्मा के सुख-आनन्द रूपी फलों की प्राप्ति हमें होती है। धर्म की प्राप्ति कहीं बाहर नहीं होती, धर्म वास्तव में हमारी आत्मा का ही स्वभाव है, जिसे सच्चे देव- सच्चे-शास्त्र एवं सन्च्चे गुरु तथा पंच परमेष्ठी की आराधना से स्वयं में ही प्रगट किया जाता है।

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