आप अपने पुण्य वैभव को बीज बना रहे हैं या राख ।भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर
संसारी जीवों के पाल दो प्रकार का वैभव प्राया जाता है। पहला बाहरी धन-वैभव और दूसरा आत्मा का अंतरंग गुण वैधन। बाहरी धन वैभव पुष्य कर्म के आधीन है जो सदैव घरता बढ़ता रहता है और एक दिन नष्ट भी हो जाता है किन्तु जो आत्मा का अनंत गुण वैभव है. वह कभी नहर नहीं होता। यह बात सत्य है कि वर्तमान में आत्मा का अनंत गुण वैभव प्रगट नहीं हुआ है किन्तु जब भी पुरुषणार्य द्वारा वह अनंत गुण वैभव प्रगट होगा फिर वह हाण वैभव कभी भी नष्ट नहीं होगा। अपितु यह समारी जीन ही संसार से छूटकर परम सिद्ध अवस्था – परमात्म दशा को प्राप्त हो जाता है। ऐसा शुभ- मांगलिक धर्म उपदेश मुजफ्फरनगर के कलातीर्य मण्ध्यम् में 24 समवशरणों के मध्य 35 पाही धारी संयमियों के साथ विराजमान भावलिंगी संते दिगम्बराचार्य श्री 108 गुरूबर विमर्शसागर जी महामुनिराज ने दिया | आचार्य गुरुवर ने पुष्य का सदुपयोग करने की पावन प्रेरवा देने
हुये कहा-बन्धुओ ! आज आपको पूर्व पुष्योदय से धन-वैभव प्राप्त हुआ है। आप उसे बीज भी बना सकते हो और राख भी बना सकते हो। ध्यान में लो, आपका धन-वैभव जब धर्म कार्यों के लिए समर्पित होता है तब वहीं हान वैभव आगामी सुख-अनुकूलनाओं के लिए बीज बनकर अनंतगुणा वैभव देने वाला है और जब आपका वहीं धन-वैभव सांसारिक भोग विलासों में लगता है तब वहीं वैभव जलकर राख बनकर नष्ट हो जाता है। आज मैं यही आपसे कहूंगा – “आप अपने पुण्य वैभव को बीज बनायें, उसे राख बनाकर नाटून, कल्पद्रुम महामण्डल विधान में 24 समवशरणों की भव्यातिभव्य स्चना के मध्य विराजमान धर्मसभा के मध्य आचार्य, प्रवर ने कहा –
आतम वैश्ववान अहा आतम है गुणवान अहा। आत्मधर्म की श्रद्धा से हो आतम भगवान अहा । शुद्धात्म शक्ति, हो-हो-२, भगवान बनाये रे ॥ जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे ॥ आचार्य श्री ने कहा- बन्धुओं आपको बाहरी पुण्य का वैभव दिखायी। आज आप देता है, बाहय वैभव में गाफिल हुआ मानव अपने आत्म गुण वैभव का तिरस्कार करता रहता है, आत्म गुणों को अगर नहीं कर पाता । श्री कल्पद्रुम महामण्डल विधान की आराधना में अपना पुण्य समर्पित करके आत्म वैभव की भावना कर रहे है यह पुरुवार्थ आपको आत्म सुष वैभव और बाहय पुष्य वैभव दोनों को दिलाने वाला होगा ।

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