प्रत्येक श्रावक को प्रतिदिन प्रतिक्रमण करना चाहिए -अनूप भंडारी

मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन दर्शन में प्रतिक्रमण का बहुत अत्यधिक महत्व है । प्रतिक्रमण कर्मों के प्रायश्चित, पश्चाताप और आत्म-शुद्धि की एक महत्वपूर्ण क्रिया है ।’प्रतिक्रमण’ का मतलब है आत्मनिरीक्षण करना । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने विचारों, शब्दों और कार्यों का आत्म-विश्लेषण करता है और अनजाने या जानबूझकर किए गए किसी भी गलत काम के लिए क्षमा याचना करता है एवं भविष्य में ऐसे कार्यों से दूरी बनाए रखने का संकल्प लेता है । प्रतिक्रमण की नियमित साधना कर्मों को कम करने और आत्मा को आध्यात्मिक मार्ग पर बनाए रखने में मदद करती है । जैन धर्म मानने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिक्रमण करना चाहिए । उक्त विचार पूज्य गुरुदेव सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के परम भक्त श्रावक श्रेष्ठी अनूप भंडारी मुरैना ने व्यक्त किए ।
प्रत्येक सांसारिक प्राणी को अपने पापों का, अपनी कषायों का, अपने कर्मों का क्षय करने हेतु प्रतिदिन या साप्ताहिक या माह में कम से कम प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिए ।
प्रतिक्रमण का प्रारूप
ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः । हे देवाधिदेव, हे जिनेन्द्र देव, हे वीतरागी प्रभु , हे सर्वज्ञ देव आपके श्री चरणों की मन वचन काय से बारम्बार वंदना करते हैं । पंच परमेष्ठी भगवन्तों की मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं । चौबीस तीर्थंकरों की मन वचन काय से बारम्बार वंदना करते हैं । विदेह क्षेत्र में विद्यमान बीस तीर्थंकरों की मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं । ढाई द्वीप में विराजमान तीन कम नौ कोटि मुनिराजो की मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं । तीर्थंकर भगवन्तों की जन्म भूमि शाश्वत तीर्थ श्री अयोध्या जी सहित सभी जन्म भूमियों की मन वचन काय से बारम्बार वंदना करते हैं । चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों की निर्वाण भूमि शाश्वत तीर्थ तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर जी, श्री कैलाश गिरि जी , श्री गिरनार जी, श्री चम्पापुर जी, श्री पावापुर जी की मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं । चारों दिशाओं में जितने भी अतिशय क्षेत्र, तीर्थ क्षेत्र, निर्वाण भूमि, सिद्ध भूमि, जिन मंदिर, जिन चैत्य, जिन चैत्यालय, निर्ग्रन्थ दिगंबर वीतरागी संत विराजमान हैं उन सभी को मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं । समाधिस्थ गुरूवर आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज के श्री चरणों की मन वचन काया से बारम्बार वंदना करते हैं ।
हे भगवन मुझ अज्ञानी जीव से जाने अनजाने में लोभ या प्रमाद वश मन वचन काय से कोई ग़लती हुई हो, कोई भूल हुई हो, अवमानना हुई हो, अपराध हुए हो, अव्हेलना हुई हो, अवज्ञा हुई हो, अनादर हुआ हो, तो उन सब दोषों के लिए मन वचन काय से बारम्बार क्षमा याचना करते हैं ।
हे भगवान मुझ अज्ञानी जीव से जाने अनजाने में लोभ या प्रमाद वश मन वचन काया से अरिहंतजी, सिद्धजी, आचार्यजी, उपाध्यायजी, सर्व साधुजी, जिन धर्म, जिन आगम, जिन चैत्य, जिन चैत्यालय के प्रति कोई ग़लती हो गई हो, भूल हो गई हो, अपराध हुए हो, अव्हेलना हुई हो, अवमानना हुई हो, अवज्ञा हुई हो, अनादर हुआ हो तो उन सभी दोषों के लिए मन वचन काय से बारम्बार क्षमा याचना करते हैं । हे भगवन मुझ अज्ञानी जीव से जाने अनजाने में लोभ या प्रमाद वश मन वचन काय से एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, पंच इन्द्रिय, सैनी, असैनी, त्रस, स्थावर, चार गति चौरासी लाख योनियों में संसार के किसी भी जीव के प्रति कोई गलती हो गई हो, भूल हुई हो, अव्हेलना हुई हो, अवज्ञा हुई हो,अनादर हुआ हो, पीढ़ा पहुंचाई हो ,कष्ट पहुंचाया हो, विरादना की हो, दिल दुखाया हो या किसी भी तरह से कोई दुःख पहुंच गया हो तो उन सब के लिए मन वचन काया से बारम्बार क्षमा याचना करते हैं तथा संसार के सभी जीवो के प्रति क्षमा भाव रखते हैं ।
हे भगवन मेरा सुगति गमन हो, समाधि मरण हो, बोधि की प्राप्ति हो, मैं रत्नत्रय को धारण करू, सिद्ध पद को प्राप्त करूं, यही मंगल भावना है । आपके श्री चरणों में विनय पूर्वक यही प्रार्थना है ।
नमोस्तु भगवन, नमोस्तु भगवन, नमोस्तु भगवन
णमोकार मंत्र का नौ बार जाप करें

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