ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर में त्रि दिवसीय अखिल भारतीय समन्वित राई-सरसों अनुसंधान परियोजना की 32वीं वार्षिक समूह बैठक के आयोजन का सुबह 10 बजे शुभारंभ किया गया। यह आयोजन भारतीय राई-सरसों अनुसंधान संस्थान, भरतपुर के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है। जिसमे देश के विभिन्न राज्यों में किये जा रहे राई-सरसों की वार्षिक समीक्षा एवं आगामी वर्षो की कार्य योजना तैयार की जाती है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता रा.वि.सिं. कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविन्द कुमार शुक्ला ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के उपमहानिदेशक, (फसल विज्ञान) डाॅ. डी.के. यादव आॅनलाईन मौजूद रहे। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डाॅ. संजीव गुप्ता एवं भारतीय सरसों अनुसंधान, भरतपुर के निदेशक विजयवीर सिंह मौजूद रहे। मंच पर विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान सेवायें, डाॅ. एस.के. शर्मा, निदेशक विस्तार सेवायें डाॅ. वाय.पी.सिंह., अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, ग्वालियर डाॅ. एस.एस. तोमर, ए.डी. आर. डाॅ. एस.एस. तोमर, एवं काॅर्डिनेटर डाॅ. मनोज त्रिपाठी उपस्थित रहे। इस तीन दिन दिवसीय आयोजन में देशभर आये लगभग 250 कृषि वैज्ञानिक शामिल हुये।
मुख्य अतिथि के तौर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के उपमहानिदेशक डाॅ. डी.के. यादव ने आॅनलाईन सम्बोधित करते हुये कहा कि राई-सरसों देश की मुख्य तिलहनी फसल है आज हमारे देश में खाद्य तेल की आवश्यकता को पूरा करने के लिये दूसरे देशो से मंगवाना पड़ता है। इसलिये भारत सरकार को तिलहन उत्पादन को बढावा देने पर विशेष ध्यान है जिसके लिये राष्ट्रीय तिलहन मिशन की शुरूआत की गई। जिसमें पूरे देश में नई किस्मों के बीज एवं किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वर्तमान आवश्यकताओं को देखते हुये राई-सरसों अनुसंधान की प्राथमिकता नये सिरे से तय करनी होगी एवं विभिन्न केन्द्रों पर किये जा रहे अनुसंधान में बेहतर समवन्य स्थापित करना होगा। और नये -नये शोध व नवाचार करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर रा.वि.सिं. कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविन्द कुमार शुक्ला ने सम्बोधित करते हुये कहा कि मध्यप्रदेश राई-सरसों का एक महत्वपूर्ण उत्पादक राज्य है। इस राज्य में राई-सरसों की असीम संभावना है। आवश्यकता है कि हम किसानों की परिस्थिति एवं उनकी फसल प्रणाली के अनुसार ही उपयुक्त किस्मों का विकास करें। उन्होंने कहा कि राई-सरसों की फसलों के लिये सल्फर के साथ-साथ पोटेशियम तत्वों का भी बहुत महत्व है इसलिये भूमि का नियमित परीक्षण करते हुये विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में तय करने के लिये अनुसंधान करने होगे इसके साथ ही बदलते हुयी जलवायु परिस्थिति में रोगों एवं कीटों का बदलते प्रकोप एवं प्रभाव का भी अध्ययन करके किसानों को सही तरीके से जानकारी देनी होगी।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक डाॅ. संजीव गुप्ता ने कहा कि राई-सरसों अनुसंधान को नई परिस्थिति के अनुसार विकसित करना होगा और उसमें सटीकता लानी होगी तथा वैज्ञानिकों को बहुविषय प्रोजेक्ट पर कार्य करना होगा। हमारे अनुसंधान किसानों की समस्या पर आधारित होना चाहिये तभी उसका लाभ ठीक तरीके से मिलेगा।
इस मौके पर भारतीय सरसों अनुसंधान, भरतपुर के निदेशक विजयवीर सिंह देश में राई-सरसों की स्थिति एवं विगत वर्षो में किये गये अनुसंधानों का प्रस्तुतीकरण दिया। इस मौके पर निदेशक अनुसंधान सेवायें, डाॅ. एस.के. शर्मा ने कहा कि राई-सरसों प्रमुख फसले है जिनका उत्पादन बढाने और नये नवाचार को लेकर हमारे यहां 32 वी. वार्षिक बैठक का आयोजन किया जा रहा है उसका लाभ पूरे मध्यप्रदेश के किसानों को मिलेगा।
इन्हें मिला सम्मान
इस मौके पर राई-सरसों के मुख्य केन्द्र हिसार को उत्कृष्ट केन्द्र के अवार्ड से सम्मानित किया गया इसके साथ ही सह केन्द्र नागपुर (अकोला) को भी उत्कृष्ट से सम्मानित किया गया तथा इस अवसर पर तकनीकी कृषि पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
सांयकाल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
कृषि विश्वविद्यालय मे त्रि दिवसीय अखिल भारतीय समन्वित राई-सरसों अनुसंधान परियोजना की 32वीं वार्षिक समूह बैठक शुरू
