मुरैना (मनोज जैन नायक) हरियाली तीज पर बड़े जैन मंदिर में उत्सव जैसा माहौल था । जैन मिलन बालिका मंडल की 50 से अधिक बालिकाएं युगल मुनिराजों को आहार दान देने के लिए दृढ़ संकल्प और नवधा भक्ति के साथ हाथों में मांगलिक बस्तुए जैसे कलश,श्रीफल, बादाम, सुपाड़ी, लौंग आदि लेकर पढ़गाहन के लिए तैयार थीं । पूज्य गुरुदेव आर्जवसागरजी महाराज के शिष्य, मुरैना नगर में चातुर्मासरत मुनिराजश्री विलोकसागरजी महाराज एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने शुद्धि के बाद श्री जिनेंद्र प्रभु की वंदना कर संकल्पपूर्वक आहारचर्या के लिए निकले तो सम्पूर्ण मंदिर प्रांगण हे स्वामी नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु, अत्रो अत्रो अत्रो, तिष्ठो तिष्ठो तिष्ठो के स्वर से गुंजायमान हो उठा ।
दृश्य था युगल मुनिराजों को आहारचर्या हेतु पढ़गाहन का । जैन मिलन बालिका मंडल की सभी बालिकाएं सामूहिक रूप में मुनिश्री को आहारचर्या के लिए आमंत्रित कर रहीं थी । बालिकाओं के लिए भी आज का दिन पुण्यशाली था, यही वजह रही कि दोनों युगल मुनिराजों की विधि मिल गई और दोनों युगल मुनिराजों का पढ़गाहन उनके चौके में हुआ । सभी ने मिलकर महामंत्र णमोकार का पाठ करते हुए पूज्य गुरुदेवों की तीन परिक्रमा की ओर बोला कि हे स्वामी मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काया शुद्धि, आहार जल शुद्ध है, भोजनशाला में प्रवेश कीजिए । सभी बालिकाएं पूर्ण श्रद्धा एवं नवधा भक्ति के साथ युगल मुनिराजों को आहार के लिए भोजनशाला में ले गईं। गुरुदेव के भोजनशाला में प्रवेश के पश्चात अष्टद्रव्य से पूजनादि के पश्चात सभी ने अत्यंत ही आत्मीयता, शुद्ध मन से दोनों मुनिराजों को आहार कराया । युगल मुनिराजों का निरंतराय आहार होने पर सभी बालिकाओं के चेहरों पर एक अलग तरह की चमक दिखाई दे रही थी ।
युगल मुनिराजों ने बालिकाओं को दिलाए संकल्प
आहारचर्या के पश्चात युगल मुनिराजों ने जैन सिद्धांतों के अनुसार बालिकाओं को कुछ संकल्प भी दिलाएं । उन्होंने कहा कि आज के बाद आप सभी नित्य देव दर्शन करेंगे, अपने माता पिता की पसंद से ही शादी करेंगे, शादी से पूर्व पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे, सदैव मुनिराजों आर्यिकाओं को आहारदान एवं वैयावृति करेंगे । साथ ही उन्होंने कहा कि वर्तमान में मानव जीवन बहुत ही संघर्षमय जीवन हो गया है । आपको जीवन में कितनी भी परेशानियां आएं, कभी घबड़ाना नहीं । परेशानियों से डरना नहीं, उनका डटकर मुकाबला करना । आत्महत्या जैसा विचार कभी भी मन में न आने देना, क्योंकि संघर्ष का नाम ही जीवन है ।
सभी बालिकाओं ने युगल मुनिराजों की बातों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें वचन दिया कि हे गुरुदेव हम भगवान महावीर स्वामी के अनुयायि होकर जैन दर्शन को अंगीकार करते हैं। आपके द्वारा आज दिलाए गए संकल्पों को सदैव पालन करेंगे ।
दिगंबर जैन संतों की आहारचर्या
जैन मुनि की आहार चर्या बहुत कठोर होती है, जिसे “सिंहवृत्ति” कहा जाता है। वे 24 घंटे में विधि मिलने पर एक बार ही अन्न जल ग्रहण करते हैं। इसमें जैन साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर, दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं और उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ कोई जीव जंतु, बाल, अपवित्र पदार्थ या कोई जीव आ जाए तो वे भोजन लेना बंद कर देते हैं और अपने हाथ छोड़ देते हैं, फिर पानी भी नहीं पीते । इस क्रिया को अन्तराय बोला जाता है । इसके बाद वे दूसरे दिन ही आहारचर्या के लिए जाते हैं।
जैन धर्म में क्या है आहारदान
जैन धर्म में आहार दान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दान, मुनियों, आर्यिकाओं और तपस्वियों को दिया जाता है ।
जैन दर्शन में आहारदान एक महत्वपूर्ण और पवित्र क्रिया है। यह अहिंसा, अपरिग्रह, और पुण्य प्राप्ति के सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म में, आहार दान का पालन करके, व्यक्ति न केवल अपने कर्मों को शुद्ध करता है, बल्कि वह दूसरों के जीवन में भी सुख और शांति लाता है ।