सुख-शान्ति-समृद्धि के लिए भक्ति और दुकान के बीच संतुलन करना ही होगा – भावलिंगी संत दिगंबराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

भावलिंगी संत ने गुरुभक्ति का दिया अनुपम उदाहरण, स्वयं बोलकर करायी अपने गुरुवर आचार्यव श्री विरागसागर जी महामुनिराज का पूजन आत्मा जन्म-मरण से रहित अजर-अमर अविनाशी है किन्तु संसारी जीव अनादि से भरने का अभ्यासी है। जिनेन्द्र भगवान ने अमर होने का मार्ग बताया, विधि बतायी है। जिनेन्द्र भगवान के मार्ग का आश्रय करने से आत्मा के अविनाशी स्वभान प्रगट होता है। यदि मैं आपसे करें कि आपके अन्दर भी अ गुण विद्यमान हैं तो आप स्वीकार नहीं करते, कहते हो “गुरुदेव। हमारे अंदर कहाँ गुण हो सकते हैं हम तो अवगुणों की ही खान हैं, गुण हम में होते तो आज हम यहाँ नहीं होते।” बन्धुओं ! कोई दूसरा हमें अपने गुणों से परिचय कराये, इसके साथ जरूरी है कि हम अपने ही गुणों से अपने अनन्त गुणों का ज्ञान प्राप्त करें। ऐसा सुमांगलिक उद्‌बोधन सहारनपुर जैन बाग के श्री 1008 महावीर जिनालय में चल रहे “सिद्ध चक्र महामण्डल विधान” के मध्य परमपूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक संघ शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महा मुनिराज ने उपस्थित धर्मसभा के मध्य दिया ।
आचार्य श्री ने धर्म पिपासुओं की धर्म प्यास पूर्ति करते हुए कहा -एक बात में आपसे पूछता हूँ – “रसगुल्ला मीठा होता है” यह बात आपने कैसे जानी ? बन्धुओ! यह बात आपने अपने ज्ञान से जानी है। जिस प्रकार, एक पात्र में चांवल पक रहे हैं कैसे जानोगे कि चावल पक चुके है? आप एक न्चावल निकालकर यह निर्णय कर लेते हैं कि पात्र के समस्त चावल पक चुके हैं। ठीक इसी प्रकार आप सब पदार्थों को अपने ज्ञान से जानते है भले ही वह ज्ञान अभी पूर्ण ज्ञान नहीं है किन्तु जब भी आपको कोई वस्तु का ज्ञान होगा वह अपने ही ज्ञान गुष से ही होगा, इसका तात्पर्य है आपके आत्मा में अनंत ज्ञान शक्ति भरी हुयी है यही ज्ञान आत्मा का एक गुण है। यहाँ आप अपने गुण से अपने आत्मा के अनन्त गुणों का परिचय कर सकते हैं।
बन्धुओ ! जिस मध्यलोक में हम-आप निवास करते हैं वह मध्यलीक बड़ा ही विशिष्ट स्थान है। आज तक जितने भी सिद्ध भगवान हुये हैं वे सब मात्र मध्यलोक से ही हुये हैं। आप कहोगे, सिद्ध भगवान तो सिद्धालय में होते हैं। ध्यान रखो, सिद्धालय तो सिद्ध भगवानों का संग्रहालय है, सिद्ध बनते तो मध्यलोक से ही हैं। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पाँचों ही परमेष्ठी मध्य लोक में ही होते हैं न तो ऊर्ध्वलोक में, न ही अधोलोक में । लोक के सर्वश्रेष्ठ महापुरुषों का उत्पादन मध्यलोक से ही होता है और आपकी दुकान भी मध्यलोक में चलती है। आपको पंचपरमेष्ठी की दुकान से जादा अपनी दुकान प्रिय है। साथ में मेरी एक बात हमेशा ध्यान रखना, “यदि जीवन में सुख, शान्ति, समृद्धि देखना चाहते हो तो पंच परमेष्ठी की दुकान एवं अपनी दुकान के बीच संतुलन बनाना ही होगा। आप प्रभु एवं गुरु की भक्ति छोड़कर मात्र अपनी दुकान की
समृद्धि चाहें तो याद रखो आपका यह ख्बाव जल्द ही मिटने वाला है।” 10 जुलाई को सहारनपुर होगा छोटा भारत, देश भर से पधार रहे हैं’ हजारों गुरुभक्त ।

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