“उत्तर प्रदेश खतौली”
जिनकी पावन पूत लेखनी से सृजित अनेकानेक पद्यात्मक मौलिक रचनायें समाज एवं राष्ट्र के लिए मार्गदर्शन बनी हुयीं हैं। ऐसे आदर्श महाकवि भावलिंगी संत आचार्य भगवन्त श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ने देशभक्ति से ओतप्रोत देश और धर्म के लिए जिओ “श्न्चना लिखी, जिसे मध्यप्रदेश शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। पूज्य श्री की अद्भुत संचना, जो “एक सुखद सुखद अनुभूतियों का अहसास – माँ ” शीर्षक से कक्षा-8 की मध्यप्रदेश शिक्षा बोर्ड में शामिल की गयी है, जो आज युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बन रही है।
16 जून की प्रातः बेला में पूज्य आचार्य प्रवर ने धर्मनगरी खतौली के सभी दिगम्बर जैन मंदिरों की अपने पतुर्विध संघ के साथ पद विहार करते हुए वन्दना की। पुनः जिनमंदिर में आकर आचार्य प्रवर ने उपस्थित धर्मसभी को सम्बोधित करते हुए कहा भगवन् के गुण गायेंगे, भगवन् सम बन जायेंगे। राग-द्वेष राहत अहा, शुद्ध आत्मा पायेंगे । गुण का पूजक ही, हो-हो-२, गुणवान कहाये रे (जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे-}
गणों की पहिचान होते ही हमें उन गुणों से समन्वित द्रव्य-पदार्थ हो जाती है और गुणों की प्राप्ति होते ही उन गुणों से परि-की पहिचान हो पूर्ण द्रव्य की भी प्राप्ति हो जाती है। आप तरबूज खरीदने बाजार जाते हो तो सर्वप्रथम उसमें चाक लगाकर देखते हो कि यह तरबूज कहीं अंदर से खराब तो नहीं है, ‘आप एक मिट्टी का घड़ा लेने जाते हैं तो ठोक – बजाकर उसकी जाँच करते हैं कि यह कहीं से फूटा तो नहीं है। जरा विचार कीजिए, कि कुछ नाचीज तरबूज अथवा घड़े को आप बिना गुणवत्ता के ग्रहण नहीं करते किन्तु हमारी सबसे बड़ी खोज “जो भगवान की खोज है” उसमें बिना विन्चार के ही मात्र भगवान संज्ञा अर्थात् किसी ने कह दिया कि यह भगवान है, आप उसे ही अपना भगवान मान बैठते हैं। कोई जाँच, कोई परीक्षा नहीं, यह कैसी आपकी श्रद्धा है कि आज ये भगवान, कल कोई और प्रभावशाली दिखा, कल से वहीं भगवान । बन्धुओ। यथार्थ में यह श्रद्धा-भक्ति नहीं यह तो घोर अज्ञानता है।
हमेशा ध्यान रखो, भगवान शब्द अपने आप ही कह रहा है। भग अर्थात ज्ञान और वान माने वाला आर्यात जो पूर्ण ज्ञान वाला है वही भगवान है। पूर्ण ज्ञानवान एक मात्र “सर्वज्ञ और वीतरागी” ही हैं। स्वर्ग के देवता अवधिज्ञानी हो सकते हैं, पूर्ण ज्ञानी नहीं। गुणों की खोज करो आपको भगवान स्वयमेव मिल जाएगें
गुणों की पहिचान बिना मिट्टी का घड़ा भी नहीं मिलता, भगवान कैसे मिलेंगे–दिगम्बर जैनाचार्य भावलिंगी संत श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
