संयम की साधना के लिए इंद्रियों को जीतना आवश्यक है – मुनिश्री विलोकसागर

मुरैना (मनोज जैन नायक) संयम की साधना के लिए इंद्रियों को जीतना आवश्यक है । जो इंद्रियों के लोलुपी हैं, विषयानुरागी हैं, ऐसे लोगों से संयम की आराधना नहीं हो सकती, संयम की उपासना नहीं हो सकती । संयम की साधना में इंद्रियां बाधक बनती हैं। सर्दी, गर्मी, प्यास उनसे सहन नहीं होगी, वो व्रत और उपवास नहीं कर पाएगा । ऐसे लोगों के मन में अनेकों प्रकार के विकल्प आयेंगे। ऐसे लोग इंद्रियों की पुष्टि के लिए 24 घंटे काम करते रहते हैं, इंद्रियों की रक्षा के लिए सतत प्रयासरत रहते हैं । आप कितना भी प्रयास कर लेना, ये इंद्रियां सदैव आपका साथ नहीं देंगी। वे अंतिम समय में आपका साथ छोड़ देंगी, एक न एक दिन ये आपको धोखा अवश्य देंगी । जो तुम्हें धोखा देने वाली हैं, समय रहते उनका सदुपयोग करलो । अपनी इंद्रियों को सही दिशा में लगाते हुए उनका उपयोग करलो । थोड़ा थोड़ा प्रयास करने से बहुत बड़ा कार्य हो सकता है । जो लोग इंद्रियों को वश में नहीं करेंगे, वे अनेकों प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जायेंगे । स्वस्थ रहने के लिए इंद्रियों पर कंट्रोल करना आवश्यक है । स्वस्थ रहने के लिए इंद्रियों पर अंकुश रखना होगा । यदि आप स्वस्थ होगें तो दूसरों की सेवा कर सकेंगे, यदि आप स्वस्थ होगे तो संयम की साधना कर सकेंगे । आने वाला समय आपसे कह रहा है कि अभी भी समय है, आप जाग जाइए। यदि स्वस्थ रहना है तो इंद्रियों पर अंकुश रखिए, यदि आपको संयम की साधना करनी है तो अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करिए अन्यथा एक दिन ये इंद्रियां आपका साथ छोड़ देंगी और आप कुछ नहीं कर पाएंगे । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
धैर्य ही जीवन का मूलाधार है
यदि हमें आगे बढ़ना है तो धैर्य के साथ ही चलना होगा । यदि आपके जीवन में धैर्य नहीं है तो आपकी जीवन रूपी गाड़ी डगमगा सकती है । जिसके जीवन में धैर्य नहीं है, उसका जीवन अंधकारमय जैसा है और जिसके जीवन में धैर्य है उसका जीवन प्रकाशमान है । हमें अपने बच्चों को धैर्य का पाठ पढ़ाना चाहिए । धैर्य का फल मीठा होता है । धैर्य के साथ जीवन यापन करने से जीवन मंगलमय होता है और संयम की साधना होती है ।
बच्चों की शादी तो हम कर देते है, लेकिन धैर्य की शिक्षा नहीं देते । यही कारण है कि उनका दाम्पत्य जीवन क्लेशमय हो जाता है । यदि वे अपने दाम्पत्य जीवन में एक दूसरे को समझने में धैर्य का परिचय देते हुए अपना जीवनयापन करेंगे तो उनका जीवन मंगलमय होगा, वे आनंदपूर्वक जीवन निर्वहन करेंगे ।
वाणी पर संयम रखना भी एक साधना है
हमें अपनी वाणी पर भी संयम रखने की आवश्यकता है । वाणी पर संयम रखना भी एक बहुत बड़ी साधना है । बोलने से पहले हमें दस बार सोचना चाहिए । सदैव मीठे वचन और अच्छे वचन बोलना चाहिए । हमें कब, कहां और कैसा बोलना है, इस का ध्यान रखना चाहिए । तरकश से छूटा हुआ तीर और मुख से निकली हुई बात वापिस नहीं ली जा सकती । हमें सदैव हित मित प्रिय वाणी बोलना चाहिए । हमारी वाणी संयमित होनी चाहिए, हमारी वाणी असंयमित नहीं होनी चाहिए । आपके जीवन में कितना भी संकटभरा समय हो, कैसी भी विपत्ति हो हमें अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए । यहीं हमारा जीवन आनंदमय और शांति पूर्वक प्रभु भक्ति और संयम की साधना के साथ व्यतीत होगा ।

फिजियो थेरेपी से हुआ 125 मरीजों का उपचार
ज्ञान सेवा सदन मुरैना में चल रहे एक्यूप्रेशर फिजियो थेरेपी चिकित्सा शिविर में तीसरे दिन 125 मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उपचार किया गया ।
उक्त शिविर में जोधपुर के फिजियो थेरेपिस्ट विशालकुमार, श्रमण चौधरी, करन चौधरी एवं मनीष चौधरी रोगियों का परीक्षण कर एक्यूप्रेशर फिजियो थेरेपी चिकित्सा पद्धति से उपचार प्रदान कर रहे हैं । उक्त शिविर 15 मई से 21 मई तक स्वयंसेवी संस्था श्री यंग दिगम्बर जैन फाउंडेशन के तत्वावधान में बड़े जैन मंदिर में चल रहा है । प्रतिदिन अनेकों रोगी शिविर में सम्मिलित होकर लाभ प्राप्त कर रहे हैं । शिविर में अधिकांशतः रोगी कमर दर्द, सिर दर्द और शरीर के अन्य हिस्सों में होने वाले दर्द के आ रहे हैं।
फाउंडेशन के महामंत्री रमाशंकर जैन “लाला” प्रतिदिन सजगता के साथ शिविर की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित कर रहे हैं

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