पंचम काल में जन्म लेने वाले अच्छे नहीं माने जाते-उपाध्याय विश्रुत सागर जी
पंचम काल में जन्म लेने वाले अच्छे नहीं माने जाते चतुर्थ काल के लोग कहा करते थे कि यदि मैंने कोई पाप किया हो तो मेरा जन्म पंचम काल में हो। ये उदगार दिगंबर जैन
आदिनाथ जिनालय छत्रपति नगर में उपाध्याय श्री विश्रुत सागर जी महाराज ने धर्म सभा में व्यक्त किये। आपने कहा कि यदि अपना कल्याण एवं सुखी होना चाहते हो तो प्रत्येक जीव आत्मा से अनुराग करें राग नहीं राग दुख का कारण है। अपने आगे कहा कि जगत को जीतने के बजाय स्वयं को जीतने का प्रयास करो, खुद को बदलें लेकिन किसी से बदला लेने के भाव ना रखें। धर्म सभा मे आर्यिका विजिज्ञासा श्री ने कहा कि जीवन में सुख शांति चाहते हो तो समता का भाव रखें, समता के विषय में कहावत है कि समता अकेली सुख दुख की सहेली। मन में इतनी क्षमता जागृत करें कि कितने भी कष्ट आ जाएं उन्हें समता पूर्वक सहन कर सकें। कष्ट आने पर दोष दूसरों का ना दें क्योंकि कष्ट सुख-दुख कर्मों से आते हैं जिस दिन यह बात व्यक्ति को जीवन में समझ में आ जाएगी उस दिन से व्यक्ति के जीवन में सुख शांति आ जाएगी।
धर्म सभा का संचालन ट्रस्ट के अध्यक्ष भूपेंद्र जैन ने किया एवं उपाध्यक्ष श्री के श्री चरणों में डॉक्टर जैनेंद्र जैन, प्रकाश पांड्या महेंद्र जैन सुपारी वालों ने श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया,
पंचम काल में जन्म लेने वाले अच्छे नहीं माने जाते-उपाध्याय विश्रुत सागर जी
