इंदौर-मंदिर में भगवान के समक्ष अज्ञानता का परिचय ना दें और पूजा आदि धार्मिक क्रिया करने में मनमानी न करें जो मनमानी करते हैं वह सम्यक दृष्टि नहीं कहलाते। आजकल लोग मंदिर में शांति पाठ पढ़ते हैं लेकिन घरों में अशांति की गूंज सुनाई देती है जिसका एकमात्र कारण मनमानी और व्यक्ति के भीतर राग द्वेष और कषाय का होना है। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि यह उद्गार आज दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय छत्रपति नगर में गणाचार्य विरागसागर जी के शिष्य तपस्वी सम्राट उपाध्याय श्री विश्रुत सागर जी महाराज ने व्यक्त किये। आपने आगे कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि व्यक्ति जियो और जीने दो के सिद्धांत अनुसार जीवन जिए एवं सभी के प्रति शत्रुता का नहीं मित्रता का भाव रखे। शत्रु भाव जिनमें होता है उन में भगवत्ता नहीं आती। अपने भावों को संभालना सबसे बड़ी साधना है जो अपने भावों को संभाल लेता है उसका मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता हैऔर वही सम्यक दृष्टि कहलाता है।
इस अवसर पर आर्यिका विरम्याश्री नेभी धर्म देशना देते हुए कहा कि त्याग से मत डरो, त्याग करो। त्यागियों के दर्शन, उपदेश से भावों में परिवर्तन आता है और वही परिवर्तन मोक्ष का कारण बनता है।प्रारंभ में अतुल जैन ने मंगलाचरण किया एवं प्रकाशचंद, शांतिलाल बड़जात्या और माणिकचंद नायक ने उपाध्याय संघ को श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। उपाध्याय श्री के पाद प्रक्षालन आर्यिका संघ ने किये एवं शास्त्र भेंट श्रीमती सुरेखा जैन, बलवंता जैन ने किए। धर्म सभा का संचालन भूपेंद्र जैन ने किया
मंदिर में भगवान के समक्ष अज्ञानता का परिचय ना दें
