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पंडित आत्मानंद जी सागर,(पूर्व नाम पंडित रतनलालजी शास्त्री) का सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हो गया

इंदौर-देश के मूर्धन्य विद्वान आगम मनीषी एवं चारों अनुयोगों के ज्ञाता पंडित रतनलाल जी शास्त्री का आज रात्रि 11:00 बजे के आसपास श्राविका आश्रम कंचन बाग में समाधि मरण हो गया है। वे कुछ समय से अस्वस्थ थे और लगभग दो माह से सल्लेखना रत थे‌।
उनके निधन से समाज ने एक श्रेष्ठ आगम अध्येता और देशभर में सर्वमान्य एक ऐसे मनीषी पंडित को खो दिया है जिनके ज्ञान और त्याग मय जीवन की प्रशंसा श्रमण समिति के महामहिम समाधिष्ट आचार्य विद्यासागर, पट्टाचार्य धरती के देवता चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर,नवाचार्य आचार्य समय सागर सहित देश भर के साधु संत एवं आर्यिका माता एवं सेकंडों की संख्या में ब्रह्मचारी भैया, एवं बहने एवं जन सामान्य किया करते थे। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि उनके समाधि मरण पर दिगंबर जैन समाज छत्रपति नगर की ओर से हम विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। भूपेंद्र जैन अध्यक्ष डॉक्टर जैनेंद्र जैन कार्य अध्यक्ष, राजेश जैन दद्दू धर्म समाज प्रचारक शिरोमणि संरक्षिका पुष्पा कासलीवाल महावीर ट्रस्ट अध्यक्ष अमित कासलीवाल फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेन्द्र कांसल हंसमुख गांधी आजाद जैन टीके वेद मंयक जैन एवं परवार समाज महिला संगठन की अध्यक्ष श्रीमती मुक्ता जैन सारिका जैन आदि

क्या है सल्लेखना समाधि मरण?
डॉ जैनेंद्र जैन
जैन शास्त्रों में सल्लेखना पूर्वक होने वाली मृत्यु को समाधि मरण, पंडित मरण, अथवा संथारा भी कहा जाता है जिसका अर्थ जीवन के अंतिम समय में तप विशेष की आराधना है जिसके आधार पर साधक मृत्यु की समीपता मानकर चारों प्रकार के आहार और क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय एवं अपने परी के प्रति मोह ममत्व का त्याग कर निराकुल भाव से परमात्मा का चिंतन करते
हुए मृत्यु का वरण करता है। सल्लेखना समाधि पूर्वक मृत्यु का वरण करना
ही मृत्यु महोत्सव है।
सल्लेखना व्रत अंगीकार करने वाले के जीवन में लोकेषणा और सुखेषणा की लालसा खत्म हो जाती है और वह अपनी आत्मिक शक्ति को पहचान कर प्रभु परमात्मा के चिंतन में अनवरत लीन रहते हुए एवं आध्यात्मिक विकास की साधना करते हुए निराकुल भाव से अपने मरण को मांगलिक बना लेता है

 

 

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