भोपाल/ग्वालियर। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा जिला प्रशासन- नगर निगम, ग्वालियर एवं मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के सहयोग से प्रतिवर्ष संगीत नगरी ग्वालियर में आयोजित होने वाला अंतर्राष्ट्रीय तानसेन समारोह अपने 101वें संस्करण के साथ पुन: संगीत के उस वातावरण को रचने के लिए तैयार है, जिसके अंतरंग में परम्पराएं, साधना, समर्पण, सम्मान और नवाचार की स्वर लहरियों की अनुगूंज होती है।
शुक्रवार को एमपीटी होटल तानसेन रेसीडेंसी, ग्वालियर में तानसेन समारोह की प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। इसमें निदेशक, उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत एवं कला अकादमी श्री प्रकाश सिंह ठाकुर, उप संचालक, संस्कृति श्री अमित कुमार यादव, उप निदेशक — उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी श्री शेखर उमड़ेकर एवं ध्रुपद केंद्र, ग्वालियर के गुरु श्री अभिजीत सुखदाड़े ने सम्बोधित किया।
निदेशक, उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी श्री प्रकाश सिंह ठाकुर ने बताया कि संगीत-शिरोमणि तानसेन की पावन स्मृति और उनकी अलौकिक संगीत-परम्परा को अक्षुण्य बनाए रखने के उद्देश्य से उनकी समाधि पर संस्कृति विभाग द्वारा प्रतिवर्ष विश्व-स्तरीय संगीत समागम “तानसेन समारोह” का भव्य आयोजन किया जाता है। जहां अपनी स्वरांजलि अर्पित करने के लिए देश-दुनिया के संगीतज्ञ पधारते हैं। इस आयोजन की सुरमई छटा में भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति संगीतज्ञों तथा रसिक समाज का अनन्य प्रेम और आस्था सजीव रूप में अनुभव की जा सकती है। अपना शताब्दी वर्ष पूर्ण कर यह प्रतिष्ठित समारोह अब अपने 101वें स्वर्णिम पड़ाव की ओर अग्रसर है। 15 से 19 दिसम्बर, 2025 तक तानसेन समाधि स्थल हजीरा, ग्वालियर में संगीत सभाओं का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस वर्ष तानसेन समारोह का मुख्य मंच ग्वालियर के सुप्रसिद्ध ‘’चतुर्भुज मंदिर या शून्य का मंदिर’’ की थीम पर सजाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि तानसेन समारोह की परम्परानुसार 9 दिसम्बर, 2025 को दतिया में प्रादेशिक पूर्वरंग श्रृंखला के आयोजन से आरम्भ हो चुका है। इसी क्रम में 13 दिसम्बर, 2025 को शिवपुरी में भी प्रादेशिक पूर्वरंग श्रृंखला अंतर्गत संगीत सभाएं आयोजित की गईं, जिन्हें सुधि श्रोताओं द्वारा बहुत सराहा गया। ग्वालियर के विभिन्न स्थलों पर भी 10 दिसम्बर से पूर्वरंग अंतर्गत प्रात:कालीन एवं सायंकालीन संगीत सभाओं का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें गंगादास की शाला, माधव संगीत महाविद्यालय, राजा मानसिंह तोमर वि.वि., कला वीथिका, महारूद्रमण्डल, शंकर गंधर्व महाविद्यालय, ध्रुपद केन्द्र, टाउन हॉल, दत्त मंदिर, बैजा ताल प्रमुख हैं।
पद्म पुरस्कार प्राप्त संगीतज्ञों के साथ स्थानीय एवं युवा कलाकारों को अवसर
तानसेन समारोह के 101वें संस्करण में पद्म पुरस्कार प्राप्त कलाकारों के साथ ही प्रतिष्ठित कलाकारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया है। इनमें प्रमुख रूप से पद्मविभूषण अमजद अली खान अपने पुत्रों अमान-अयान अली बंगस के साथ पधार रहे हैं, सुविख्यात गायिका पद्मश्री सुमित्रा गुहा, सितार वादक पद्मश्री शिवनाथ – देवब्रत मिश्र, संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड प्राप्त सुश्री कलापिनी कोमकली, मध्यप्रदेश शासन का कुमार गंधर्व सम्मान – 2008 से अलंकृत श्री संजीव अभ्यंकर एवं राष्ट्रीय तानसेन सम्मान से अलंकृत होने जा रहे पं. तरुण भट्टाचार्य एवं पं. राजा काले की संगीत सभाएं सजेंगी। इसके साथ ही प्रतिभावान स्थानीय कलाकारों एवं युवा कलाकारों को भी तानसेन समारोह का मंच प्रदान किया जा रहा है, ताकि संगीत की यह परम्परा नई पीढ़ी के माध्यम से भी दमकती रहे।
राष्ट्रीय तानसेन सम्मान एवं राजा मानसिंह तोमर सम्मान अलंकरण समारोह
101वें तानसेन समारोह के शुभारंभ अवसर पर 15 दिसम्बर, 2025 को सायं 6:30 बजे से मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय तानसेन सम्मान अलंकरण एवं राजा मानसिंह तोमर सम्मान अलंकरण समारोह का आयोजन तानसेन समाधि स्थल पर किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024 के राष्ट्रीय तानसेन सम्मान से पंडित राजा काले, मुम्बई को गायन के लिए एवं वर्ष 2025 का पंडित तरुण भट्टाचार्य, कोलकाता को संतूर वादन के लिए अलंकृत किया जाएगा। राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान वर्ष 2024 का साधना परमार्थिक संस्थान समिति, मण्डलेश्वर एवं वर्ष 2025 का रागायन संगीत समिति, ग्वालियर को प्रदान किया जाएगा। राष्ट्रीय तानसेन सम्मान वर्ष 1980 से प्रदान किया जा रहा है, जो अब 55 विभूतियों को प्रदान किया जा चुका है। वहीं, राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान 2011 से प्रदान किया जा रहा है, जो अब तक 13 संस्थाओं को प्रदान किया जा चुका है।
वादी-संवादी में महत्वपूर्ण विषयों पर वक्तव्य
101 वें तानसेन संगीत समारोह में संगीत सभाओं के साथ-साथ अनुषांगिक गतिविधियों का आयोजन भी किया जा रहा है। इसके अंतर्गत राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर में लोकप्रिय गतिविधि वादी-संवादी का आयोजन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत 16 दिसम्बर, 2025 को दोपहर 3 बजे से ‘’ध्रुपद शैलियों से परिवर्तित होती शैलियों का स्वरूप एवं उद्भव’’ विषय पर सुश्री मधु भट्ट तैलंग, जयपुर का वक्तव्य होगा। वहीं, 17 दिसम्बर, 2025 को दोपहर 3 बजे से ‘’तानसेन की जीवन यात्रा’’ विषय पर श्री राकेश शुक्ला, दिल्ली का वक्तव्य होगा। 18 दिसम्बर, 2025 को दोपहर 3 बजे से ‘’ताल के द्वारा रस की अनुभूति’’ विषय पर पं. डालचंद शर्मा, दिल्ली का वक्तव्य होगा।
तानसेन समारोह का सजीव चित्रांकन
तानसेन समाधि स्थल, हजीरा, ग्वालियर में 15 से 18 दिसम्बर, 2025 को विभिन्न अनुषांगिक गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत तानसेन समारोह की प्रस्तुतियों पर एकाग्र प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा वरिष्ठ चित्रकारों द्वारा राग आधारित चित्रांकन सत्र, तानसेन समारोह का सजीव चित्रांकन किया जाएगा। इसमें श्री आलोक भावसार – भोपाल, श्री नवनाथ क्षीरसागर – पुणे, श्री अरुण सुतार – कोल्हापुर, श्री कृष्ण कुमार कुण्डारा – जयपुर, श्री रघुनाथ साहू – भुवनेश्वर, श्रीमती दुर्गा बाई व्याम – भोपाल, श्रीमती सुमित्रा अहलावत – दिल्ली, श्री निशिकान्त पलान्दे – मुम्बई, श्री मनदीप शर्मा – उदयपुर, श्री संदीप अहीर – जालना (महाराष्ट्र) शामिल हैं। इसके साथ ही ललित कला महाविद्यालयों के छात्र-छात्रायें भी चित्रांकन करेंगे और उनकी चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जा रहा है।
गमक में जसपिंदर नरुला का सूफी गायन
तानसेन समारोह में यह परम्परा रही है कि एक दिन पूर्व संध्या पर इंटक मैदान, ग्वालियर में संगीत सभा का आयोजन किया जाता है। इसमें सुगम संगीत की सभा का आयोजन किया जाता रहा है। इसी के अनुरूप इस वर्ष 14 दिसम्बर, 2025 को सायं 6 बजे से सुविख्यात गायिका जसपिंदर नरूला, मुम्बई की सूफी गायन सभा का आयोजन किया जा रहा है। इसके पूर्व श्री चन्दन दास, सुश्री रिचा शर्मा, श्री हंसराज हंस, वडाली बंधु जैसे सुविख्यात गायक कलाकारों की गायन सभा का आयोजन किया जा चुका है।
सनराइज टूर, ज्वेल्स ऑफ द रेवाइन्स, थीमैटिक फूड फेस्टिवल
101वें तानसेन संगीत समारोह के दौरान मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विविध पर्यटन गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर तानसेन समाधि स्थल परिसर में प्रात: 10 से सायं 7 बजे तक मध्यप्रदेश की कला एवं शिल्प का लाइव प्रदर्शन, शिल्पियों के स्टॉल का आयोजन होगा। वहीं, एमपीटी होटल तानसेन रेसीडेंसी से प्रात: 10 से सायं 5 बजे तक म्यूजिकल स्ट्रिंग्स ऑफ ग्वालियर, ज्वेल्स ऑफ द रेवाइन्स का आयोजन होगा। होटल तानसेन रेसीडेंसी से प्रात: 10 से सायं 6 बजे तक डे एक्सकर्शन टू द मिडीवल लैंड – ओरछा, प्रात: 6 से 10 बजे तक सनराइज टूर ऑफ ग्वालियर, प्रात: 10 से सायं 6 बजे तक ग्वालियर सिटी टूर, सायं 4 से 7 बजे तक सनसेट टूर ऑफ ग्वालियर और थीमैटिक फूड फेस्टिवल का आयोजन सायं 7 से 10 बजे तक आयोजित किया जा रहा है।
मुख्य समारोह में सुविख्यात संगीतज्ञों की संगीत सभाएं
15 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
मजीद खाँ एवं साथी, शहनाई वादन
ढोली बुआ महाराज संत एवं सच्चिदानंदनाथ एवं साथी, हरिकथा
कामिल हजरत, ग्वालियर, मीलाद
सायं 6 बजे
विक्रम राणा, ग्वालियर, शंखनाद
माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
पण्डित तरूण भट्टाचार्य, कोलकाता, संतूर वादन
आभा-विभा चौरसिया, इंदौर, युगल गायन
पण्डित राजा काले, मुम्बई, गायन
16 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
भारतीय संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
सुनील पावगी, ग्वालियर, हवाईन गिटार
रीतेश-रजनीश मिश्र, वाराणसी, युगल गायन
घनश्याम सिसौदिया, दिल्ली, सारंगी वादन
सायं 6 बजे
ध्रुपद केन्द्र, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
पद्मविभूषण अमजद अली खान एवं अमान-आयान अली खान बंगस, मुम्बई, सरोद तिगलबंदी
रसिका गावड़े, इंदौर, गायन
पद्मश्री सुमित्रा गुहा, दिल्ली, गायन
17 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
पण्डित नवीन गंधर्व, मुम्बई, बेलाबहार
पण्डित विनोद कुमार द्विवेदी एवं आयुष द्विवेदी, कानपुर, युगल गायन
डॉ. साधना देशमुख मोहिते, ग्वालियर, गायन
(विश्व संगीत) सिमोन मैटिएलो, रोम, बांसुरी
सायं 6 बजे
शारदानाथ मंदिर, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
संजीव अभ्यंकर, पुणे, गायन
शैलेश भागवत, मुम्बई, शहनाई
अग्निमित्रा एवं साथी, भुवनेश्वर तबला, पखावज, वायलिन एवं बांसुरी
18 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
श्री साधना संगीत कला केन्द्र, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
चेतन जोशी, दिल्ली, बांसुरी
डॉ. ॠषि मिश्रा, प्रयागराज, गायन
सारंग लासूरकर, ग्वालियर, तबला
आशीष विजय रानाडे, नासिक, गायन
सायं 6 बजे
शंकर गंधर्व महाविद्यालय, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
डॉ. मैसूर-सुमंथ मंजूनाथ, कर्नाटक, वायलिन जुगलबंदी
कलापिनी कोमकली, देवास, गायन
पद्मश्री शिवनाथ-देवब्रत मिश्र, वाराणसी, सितार जुगलबंदी
बटेश्वर जिला, मुरैना
विशेष संगीत सभा
18 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
सुधाकर देवले, उज्जैन, गायन
सुभाष देशपाण्डे, मुरैना, वायलिन
निर्भय सक्सेना, ग्वालियर (पुणे), गायन
19 दिसम्बर, 2025
प्रातः 10 बजे
बेहट, ग्वालियर
ध्रुपद केन्द्र , बेहट, ध्रुपद गायन
विशाल मोघे, ग्वालियर, गायन
मिलिन्द रायकर, मुम्बई, वायलिन
योगिनी ताम्बे, ग्वालियर, गायन
सायं 6 बजे
गूजरी महल, ग्वालियर
तानसेन संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर, ध्रुपद गायन
डॉ. नलिनी जोशी, दिल्ली, गायन
संगीता अग्निहोत्री, इंदौर, तबला
उमा गर्ग, दिल्ली, गायन
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उक्त समाचार को अपने प्रतिष्ठित समाचार पत्र में प्रकाशित करने का अनुरोध है।
निदेशक,
उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी
भोपाल (मध्यप्रदेश)
राष्ट्रीय तानसेन सम्मान एवं राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान से अलंकृत होने जा रहीं विभूतियों का परिचय
राष्ट्रीय तानसेन सम्मान वर्ष – 2024
पं. राजा काले, मुम्बई
पण्डित राजाराम उर्फ राजा काले एक भारतीय गायक, संगीतकार, शास्त्रीय, उप-शास्त्रीय और भक्ति संगीत के विद्वान हैं। पण्डित राजा काले ऐसे अद्वितीय कलाकार हैं, जिन्होंने संगीत की मूल आत्मा को समझते हुए उसे अपने गहन अभ्यास, मौलिकता और समर्पण के माध्यम से नए आयाम प्रदान किए हैं। संगीत आपके लिए केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि एक सतत साधना है, जिसे आप अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण धरा मानते हैं। इसी कारण आपका गायन, आपकी शैली और आपकी भाव परकता श्रोताओं को एक विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
आपका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ संगीत ही जीवन की धुरी था। आपके पिता पण्डित प्रभाकरराव काले, स्वयं एक गहरे अध्ययनशील और साधनापरक कलाकार थे। उन्हीं से बाल्यावस्था में पं. राजा काले ने संगीत की प्रथम दीक्षा प्राप्त की। आगे चलकर आपको पं. उत्तमराव अग्निहोत्री का संरक्षण मिला, जिसने आपकी गायकी में अनुशासन और सौंदर्यबोध का संपुष्ट आधार तैयार किया। इसके बाद आपके जीवन में प्रवेश हुआ महान संगीतकार और शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के तेजस्वी हस्ताक्षर पण्डित जितेंद्र अभिषेकी का। पण्डित सी.पी. रेले, पण्डित के. जी. गिंडे एवं पण्डित बालासाहेब पूछवाले जैसे दिग्गज गुरुओं की शिक्षाओं से आपके संगीत में विविधता, विस्तार और परम्परा का दृढ़ सम्मिश्रण विकसित हुआ।
आपने वर्ष 1990 में ‘ख्याल में बंदिशों के महत्व’ विषय में पीएच. डी. प्राप्त की। इस शोध में आपने पारंपरिक, मध्यकालीन और आधुनिक संगीतकारों की बंदिशों का विस्तृत विश्लेषण किया तथा उनके सौंदर्य, संरचना और भावगत प्रभाव पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया। आगे चलकर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने आपकी विद्वता को पहचानते हुए आपको ‘पं. भीमसेन जोशी, पं. कुमार गंधर्व, पं. जितेंद्र अभिषेकी एवं पं. जसराज के गायन का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर सीनियर फैलोशिप प्रदान की। आपके अध्ययन ने आपकी गायकी को न केवल गहराई दी, बल्कि प्रस्तुतियों में एक विशिष्ट परिपक्वता और विचारपूर्ण दृष्टि भी प्रदान की। आप बंदिशों को उनके मूल स्वरूप में रखते हुए भी उनमें आत्मीयता और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का सुंदर रंग घोल देते हैं, जो आपके संगीत की विशिष्ट पहचान है।
आपकी गायकी में सहजता, गहन भाव, अभिव्यक्ति और रागों की सूक्ष्म संरचना का अद्भुत संतुलन है। ख्याल, ठुमरी, दादरा, टप्पा, भजन, नाट्य-संगीत और भावगीत हर शैली में आपका स्वाभाविक अधिकार दिखाई देता है। रागों की प्रस्तुति में आप न केवल परम्परा का पालन करते हैं, बल्कि उसमें अपनी विशिष्टता और कलात्मकता भी जोड़ते हैं, जिसके कारण आपका हर कार्यक्रम एक नई अनुभूति बन जाता है। आपकी प्रस्तुतियाँ देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर गूँज चुकी हैं, जिनमें तानसेन समारोह, स्वामी गंधर्व महोत्सव, पं. पालुस्कर स्मृति समारोह इत्यादि प्रमुख हैं। आप वर्ष 2000 में अमेरिका के 12 प्रमुख शहरों में अपनी प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी आपके अनेकों कार्यक्रम प्रसारित हो चुके हैं, जिन्होंने संगीत रसिकों के हृदयों में अमिट छाप अंकित की है।
आपकी पहचान केवल परंपरागत प्रस्तुतियों तक ही सीमित नहीं है, आप अपने विशिष्ट एवं अत्यन्त सृजनात्मक थीम आधारित कार्यक्रमों के लिए भी उतने ही विख्यात हैं। ‘अभंग वर्षा’ में आपने महाराष्ट्र की संत परम्परा के अभंगों को नई उड़ान दी। ‘सगुण-निर्गुण’ में भारतीय भक्ति-धारा के दोनों स्वरूपों-साकार और निराकार को एक साथ जोड़कर उसकी आध्यात्मिक अनुभूति को श्रोताओं तक पहुँचाया। ‘अविस्मरणीय अभिषेकी’ आपके गुरु पं. जितेंद्र अभिषेकी को समर्पित एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति है, जिसमें गुरु के संगीत की आत्मा को पुनः जीवंत किया है। ‘चतुरंग’ में चार महान गायकों पं. भीमसेन जोशी, पं. कुमार गंधर्व, पं. जसराज और पं. जितेंद्र अभिषेकी की गायकी का सार संगीतबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं ‘प्रेमरंग’ में आपने प्रेम-प्रधान कविताओं को मधुर धुनों में पिरोकर गीतों को उच्च सौंदर्य स्तर तक पहुँचाया है।
पं. राजा काले ने अपने संगीत को विभिन्न एलबमों के माध्यम से भी सहज और व्यापक रूप दिया है। HMV का ‘राग सरिता’, पेन म्यूजिक का ‘सीजन्स’, प्रथमेश आर्ट्स का ‘बंदिश’ आदि आपके लोकप्रिय एलबम में से हैं। आपकी प्रतिभा और कलात्मकता को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें पं. भीमसेन जोशी द्वारा प्रदान किया गया वत्सलबाई जोशी पुरस्कार आपके संगीत-विरासत की ऊँचाइयों का प्रमाण है।
राष्ट्रीय तानसेन सम्मान – वर्ष 2025
पं. तरुण भट्टाचार्य, कोलकाता
पण्डित तरुण भट्टाचार्य भारतीय शास्त्रीय संगीत के उन विरले कलाकारों में से हैं, जिन्होंने न केवल संतूर वाद्य को वैश्विक पहचान दिलाई, बल्कि इसके स्वरूप, शैली और तकनीक में क्रांतिकारी परिवर्तन कर इसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। 23 दिसम्बर, 1957 को पश्चिम बंगाल में जन्मे पण्डित तरुण भट्टाचार्य प्रसिद्ध संतूर वादक एवं संगीतकार के रूप में विश्वभर में सम्मानित हैं। आपके पिता रबी भट्टाचार्य ने प्रारंभिक जीवन से ही आप में संगीत के प्रति अनुशासन, संस्कार और संवेदनशीलता का बीज बोया। एक संतूर विशेषज्ञ के रूप में आपने अपने पाँच दशकों से अधिक लंबे करियर में संतूर को विश्व मंच पर एक नई प्रतिष्ठा दिलाई है।
प्राचीन काल में शततंत्री वीणा के रूप में जाना जाने वाला यह वाद्य विदेशी आक्रमणों और समय की धुंध में अपनी मूल पहचान खो बैठा था, परंतु आपने इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में अद्भुत प्रयास किए। आपने संतूर को उसकी जड़ों से जोड़ते हुए उसे आधुनिक तकनीक, नई सोच और अभिव्यक्ति के व्यापक रूपों से जोड़ा, जिससे यह वाद्य भारतीय शास्त्रीय संगीत के बड़े मंच पर अपनी चमक के साथ पुनः स्थापित हो सका। आपकी सबसे क्रांतिकारी उपलब्धियों में से एक है संतूर में मींड तकनीक का प्रयोग। संतूर की पारंपरिक संरचना में मींड देना लगभग असंभव माना जाता था, परंतु आपने अपने कौशल, अनुसंधान और समर्पण से यह संभव कर दिखाया। इससे संतूर अभिव्यक्ति के स्तर पर सितार जैसे वाद्यों के और निकट आ गया। इसी तरह मनकास या फाइन-ट्यूनर्स का आपका यह आविष्कार संतूर की ट्यूनिंग को तेज, स्थायी और अत्यन्त सटीक बनाता है, जिससे यह 100 तारों वाला वाद्य शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति में और अधिक प्रभावशाली बन सका।
आप सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि विद्वान, रचनाकार और नवोन्मेषी संगीतकार भी हैं। स्वच्छ गंगा अभियान से प्रेरित होकर ‘राग गंगा’ की रचना की, जिसे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा प्रारंभ किए गए इस अभियान से प्रेरित होकर बनाया गया। इसके अलावा ‘राग त्रिवेणी’ जैसी आपकी रचनाएँ भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक नया अध्याय जोड़ती हैं। आपका सामाजिक योगदान उतना ही विस्तृत और संवेदनशील है जितना आपका संगीत। थैलेसीमिया जागरूकता के लिए कई अभियान चलाए और लोगों को इस आनुवंशिक बीमारी के बारे में जागरूक किया। नियमित जांच, प्रारंभिक पहचान और उचित इलाज के महत्व को उजागर करते हुए सैकड़ों परिवारों को सहायता और समर्थन प्रदान किया। साथ ही एण्ड पोलियो अभियान में रोटरी इंटरनेशनल के साथ जुड़कर पोलियो उन्मूलन के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई। आपकी भागीदारी ने न केवल जागरूकता बढ़ाई, बल्कि धन-संग्रह के कार्यक्रमों के जरिए अनगिनत बच्चों को इस बीमारी से बचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अमेरिका के 15 शहरों में शंकरा आई फाउंडेशन के लिए आयोजित ‘विजन-2020’ फण्ड रेजिंग संगीत कार्यक्रमों ने टाली जा सकने वाली अंधता के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए एकत्रित धन से हजारों जरूरतमंदों को निःशुल्क नेत्र चिकित्सा उपलब्ध करवाई, साथ ही नेत्रदान अभियान को भी मजबूती दी। संगीत के क्षेत्र में आपका परमार्थिक योगदान ‘संतूर आश्रम’ के रूप में दिखाई देता है, जहाँ वंचित बच्चों को निःशुल्क संगीत-शिक्षा देकर भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रतिभाओं को संवारा जाता है। पण्डित भट्टाचार्य द्वारा संचालित गुरुकुल, कार्यशालाएँ और विभिन्न संगीत कार्यक्रम हजारों युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा बनकर उन्हें प्रमुख मंचों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं।
आप गुरु-शिष्य परम्परा के सच्चे संरक्षक और संवाहक हैं। विश्वभर के प्रतिष्ठित मंचों जैसे रॉयल अल्बर्ट हॉल, ब्रसेल्स के पैलेस-दे-बॉ, फ्रांस के थिएटर-दे-ला-विल, स्पेन के अपोलो थिएटर, कनाडा के जुबिली ऑडिटोरियम और रूस के क्रेमलिन पर आपके प्रदर्शन गूँज चुके हैं। पाँच दशकों में रिकॉर्ड किए गए आपके 200 से अधिक एल.पी., कैसेट्स और सीडी संतूर की समृद्ध परम्परा का दस्तावेज बन चुके हैं। आपकी प्रतिष्ठित सीडी ‘किरवानी’ को विश्व के शीर्ष दस संगीत संग्रहों में स्थान मिला है, जो आपकी कला व मौलिकता की श्रेष्ठता का परिचायक है।
आप भारत के ग्लोबल म्यूजिक एम्बेसडर के रूप में सम्मानित हैं और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत हैं। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रदान किया गया ‘संगीत महासम्मान’ भी आपकी कला-साधना की विरलता को प्रमाणित करता है। संतूर के प्रति आपका योगदान अद्वितीय है।
राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान – वर्ष 2024
साधना परमार्थिक संस्थान समिति, मण्डलेश्वर
साधना परमार्थिक संस्थान समिति सामाजिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक तीनों क्षेत्रों में समप्रभुता के साथ कार्यरत सक्रिय संस्था है। समिति संगीत लिट्रसी विषय ‘सुर चैतन्य’ शीर्षक के अंतर्गत कार्य कर रही हैं, जिसमें शालेय विद्यार्थी, युवा तथा ग्रामीण स्त्री-पुरुषों को एक सरल सुगम मार्ग से संगीत से जोड़ना तथा भावनात्मक, मानसिक, बौद्धिक रूप से सुदृढ़ करने हेतु संकल्पित है। साधना परमार्थिक संस्थान आरंभ में सुर चैतन्य कला केन्द्र, मुम्बई के साथ संयुक्त रूप से कार्य रही थी, किन्तु वर्ष 2013 से संस्था स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही हैं।
जैसा कि विदित है अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मण्डल, मुम्बई की एक ऐसी संस्था है, जो शास्त्रीय संगीत पाठ्यक्रम तथा परीक्षा प्रणाली विगत 100 से अधिक वर्षों से संचालित करती है, इसी महाविद्यालय द्वारा मण्डलेश्वर में अखिल भारतीय संगीत शिक्षक-परीक्षक शिविर का आयोजन किया जाना तय हुआ, जहाँ पण्डित संतोष कोल्हटकर, मुम्बई से आकर शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण दिया करते थे। यह पण्डित कोल्हटकर जी का ही स्वप्न रहा कि शहरी व ग्रामीण बच्चों को एक साथ लाने से संस्कृति का आदान-प्रदान सरल एवं सुगम हो सकेगा। इसी भाव को समृद्ध एवं सफल करने के लिए साधना परमार्थिक संस्थान समिति की नींव एवं संकल्पना पण्डित संतोष कोल्हटकर ने की। किन्तु इसी बीच आपकी अस्वस्थता के कारण यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। किन्तु आपके स्वप्न को पूर्णता प्रदान की, पण्डित भालचन्द्र जोशी एवं आपनी पत्नि प्रेरणा कोल्हटकर, पुत्री-सुरभि कोल्हटकर एवं पुत्र गणपति कोल्हटकर ने, जिन्होंने इस संस्था के निर्माण के साथ ही इसके समन्वय, संयोजन एवं व्यवस्था का संपूर्ण कार्य दायित्व संभाला।
संस्था द्वारा इसके पश्चात् 3 दिवसीय वृहद् प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न विषय व संगीत स्तरों पर प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस प्रतियोगिता में राज्य के सुदुर क्षेत्रों से 300 प्रतिभागी शामिल हुए, जिन्हें शास्त्रीय संगीत के महत्व एवं इसकी बारीकी से रूबरू कराया गया। संगीत प्रतियोगिता के दौरान यह परिलक्षित हुआ कि सुदुर गाँवों में बच्चों की आवाज बुलंद है, उनमें ललक है, उनके पास इस विषय पर मेहनत करने हेतु समय है तथा वे इस क्षेत्र में कुछ करना भी चाहते है, किन्तु उन्हें प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं है। संस्था द्वारा गुरुकुल के माध्यम से निरन्तर इन बच्चों को प्रशिक्षण दिया जाता है तथा समय-समय पर मंचीय प्रस्तुति के माध्यम से इनकी कला को निखारा जाता है। साधना परमार्थिक संस्थान समिति ने इन बच्चों की ललक को देखते हुए एक स्थान पर 111 शालेय बच्चों को एकत्रित कर 20 मिनिट में एक छोटा ख्याल सिखाया गया, जिसे 21वें मिनिट में बच्चों ने सामूहिक रूप से गाकर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया

