अंबाह।(अजय जैन) श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन परेड मंदिर में चल रहे पर्युषण पर्व के तहत सातवें दिवस उत्तम तप धर्म की विशेष आराधना की गई। गुना से पधारे पंडित आयुष शास्त्री ने अपने प्रेरक प्रवचन में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि तप ही आत्मा की वास्तविक शक्ति है और इसके अभ्यास से व्यक्ति भोग-विलास से दूर होकर आत्मा की शुद्धि की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने कहा कि केवल शरीर को तपाना ही तप नहीं है, बल्कि इच्छाओं का निरोध करना ही वास्तविक तप है। जब राग, द्वेष और मोह रूपी मैल आत्मा से अलग हो जाते हैं और आत्मा अपने शुद्ध ज्ञान और शुद्ध दर्शन स्वरूप में प्रकट होती है, तभी तप का सच्चा अर्थ पूरा होता है।
उन्होंने बताया कि तप ही वह साधन है जिससे कर्मों का संवर और निर्जरा होती है। तप आत्मा को कर्ममल से मुक्त कर देता है और इसके प्रभाव से जीवित अवस्था में भी अनेक ऋद्धियाँ प्रकट हो जाती हैं। तप का प्रभाव इतना अद्भुत और अचिन्त्य है कि इसके बिना काम, निद्रा और इच्छाओं को जीतना संभव नहीं है। इंद्रियों के विषयों पर विजय पाने में केवल तप ही समर्थ है। तप करने वाला साधक चाहे कितने भी कष्ट, उपसर्ग और परिषह का सामना क्यों न करे, वह रत्नत्रय धर्म से कभी विचलित नहीं होता। संसार से छुटकारा पाने का एकमात्र मार्ग तप ही है। यही कारण है कि चक्रवर्ती सम्राट भी अपने राज्य और ऐश्वर्य को त्यागकर तप की साधना करते हैं और तीनों लोकों में वंदनीय एवं पूजनीय बनते हैं। इसलिए तीनों लोकों में तप धर्म के समान महान कुछ भी नहीं है।
पंडित आयुष शास्त्री ने कहा कि तप के अभ्यास से आत्मा की शुद्धि और विकास होता है। तप न केवल आत्मिक संतोष प्रदान करता है, बल्कि जीवन में स्थिरता और सच्चा आनंद भी लाता है। उन्होंने श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हुए कहा कि यदि जीवन में तप का अभ्यास दृढ़ता से किया जाए तो आत्मा कर्मों से मुक्त होकर परम शांति को प्राप्त करती है।
प्रवचन के बाद मंदिर परिसर में प्रश्न मंच का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों और युवाओं ने भाग लिया। मंच पर धार्मिक और सामान्य ज्ञान से जुड़े प्रश्न पूछे गए जिनका उत्तर देकर प्रतिभागियों ने अपनी समझ और अध्ययन का परिचय दिया। बच्चों ने जहाँ धर्म से जुड़े प्रश्नों का सहज उत्तर देकर सबका मन जीता वहीं युवाओं ने सामान्य ज्ञान में अपनी बुद्धिमत्ता दिखाकर तालियाँ बटोरीं। कार्यक्रम में विजेताओं को पुरस्कार भी प्रदान किए गए। पुरस्कार वितरण का कार्य अनिल जैन अन्नी, रीतेश जैन ने किया। उन्होंने विजेताओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन से न केवल धार्मिक ज्ञान बढ़ता है, बल्कि समाज में सहभागिता और उत्साह भी बढ़ता है।
कपिल जैन केपी ने बताया कि पर्युषण पर्व के अंतर्गत चल रहे धार्मिक अनुष्ठान, प्रवचन, पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम अनंत चतुर्दशी तक जारी रहेंगे। प्रतिदिन श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति यह दर्शाती है कि समाजजनों में धर्म के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा है। मंदिर परिसर दिनभर भक्तों की भीड़ से भरा रहा और वातावरण भक्ति व संयम की सुगंध से सराबोर रहा।
सातवें दिवस का यह आयोजन आत्मशुद्धि, संयम और तप की महिमा का जीवंत उदाहरण बनकर श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति और प्रेरणा प्रदान करता रहा। श्रद्धालुओं ने इस अवसर को जीवन की दिशा बदलने वाला क्षण बताया और कहा कि पर्युषण पर्व वास्तव में आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का सर्वोत्तम अवसर है, जिसे हर व्यक्ति को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।