रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध कैसे रुकेगा, इसपर दुनिया के अलग-अलग मंचों पर मंथन हो रहा है. दोनों देशों के समर्थक गुट कई बार सुलह की कोशिशें कर चुके हैं और कई फॉर्मूले सामने आए हैं, लेकिन समाधान अभी तक नहीं निकला है. अब एक और कोशिश हो रही है जो सऊदी अरब की ओर से की जा रही है. सऊदी अरब ने ग्लोबल साउथ के 40 से अधिक देशों को एक मंच पर लाकर यूक्रेन के सुझावों पर मंथन किया है, जिसमें भारत के अजित डोभाल भी मौजूद थे. लेकिन इस मंथन से क्या नतीजा निकला है और इसका क्या असर हो सकता है, समझिए…
कहां और कब हुई बैठक, कौन हुआ शामिल?
सऊदी अरब ने यूक्रेन को एक मंच देने के लिए शनिवार-रविवार को एक बैठक का आयोजन किया, जिसमें ग्लोबल साउथ के 40 से अधिक देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मौजूद थे. भारत और चीन भी इस बैठक में शामिल थे, यहां रूस को निमंत्रण नहीं दिया गया था हालांकि उसकी नज़रें भी इसपर टिकी थीं. जेद्दाह में हुई इस बैठक में 40 देशों के अलावा अमेरिका-चीन के स्पेशल गेस्ट भी बैठक का हिस्सा बने.
सऊदी अरब की ओर से आयोजित इस बैठक में यूक्रेन द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर चर्चा हुई. सऊदी की कोशिश इस तरह की बैठक का आयोजन कर खुद को बड़े लेवल पर दुनिया में पेश करने की एक कोशिश है, जहां वह यह संदेश देना चाहता है कि वह कट्टरता से आगे बढ़कर दुनिया के साथ चलने और उसकी अगुवाई करने के लिए तैयार है.
भारत की ओर से डोभाल ने क्या कहा?
भारत की ओर से एनएसए अजित डोभाल ने इस मीटिंग में हिस्सा लिया और यूक्रेन-रूस के युद्ध पर अपनी बात कही. अजित डोभाल ने साफ कहा कि भारत इस विवाद के मूल समाधान का पक्षधर है और इसके लिए लगातार कोशिशें भी कर रहा है. इस युद्ध में शामिल सभी पक्षधरों को शांति के जरिए मसले का हल निकालने का रास्ता ढूंढना चाहिए, भारत इसलिए ही इस बैठक का हिस्सा बना है. अजित डोभाल ने कहा कि इस युद्ध का असर पूरे विश्व पर पड़ रहा है, खासकर ग्लोबल साउथ इसका दबाव झेल रहा है. एनएसए ने फिर दोहराया कि भारत ने शुरुआत से ही युद्ध का रास्ता छोड़ बातचीत के रास्ते पर लौटने की अपील की है.
बैठक में यूक्रेन का क्या था एजेंडा?
रूस के साथ जारी युद्ध में यूक्रेन कभी पिछड़ता दिखता है तो कभी आगे निकलता दिखता है, लगातार वह पश्चिमी देशों के साथ मिलकर इसपर काम भी कर रहा है. सऊदी अरब के जरिए इस बैठक का आयोजन करने का मकसद ग्लोबल साउथ देशों को अपने साथ जोड़ना रहा है, क्योंकि यहां के अधिकतर देशों ने अभी तक खुलकर किसी भी देश का समर्थन नहीं किया है. भारत की भी बात करें तो वह खुलकर किसी एक देश के समर्थन में नहीं आया है और दोनों तरफ शांति का संदेश दे रहा है.