जहाँ त्याग तपस्या संयम शील को बहती निर्मल धारा
वो विद्यागुरु हमारा 2
पिता श्री मल्लपा जी और मात श्रीमति के दुलारे बचपन से विद्यासागर ने श्री जिनवचन उच्चारे लिया तरुणाई में ब्रहमचर्य व्रत है यह कितना न्यारा वो विद्यागुरु हमारा 2
संसार शरीर और भोगो से जिसने है नेह हटाया गुरु ज्ञान सागर जी से विद्यासागर जी नाम पाया चल दिये छोड़ चल दिए सभी घर बार सभी मुक्ति का पंथ उजियारा वो विद्यासागर हमारा 2
जो क्रोध लोभ ओर माया से नित् नित दूर ही रहते
जीवादि प्रयोजन भूत तत्वों पे नित नित चिंतन करते
जिनकी वाणी ने भेद ज्ञान का अमृत कलश बिखेरा वो विद्यागुरू 2
श्री महावीर स्वामी से आप लगते थे लघुनंदन
इस पंचकाल में बार रहे थे कुन्द कुंद का कुन्दन
जितने भी शिष्य हुए जगती में उनको नमन हमारा
जिनके सन्मुख उपमा छोटी से छोटी होती जाए
वो मन्द मुस्कान सदा चेहरे पर खिलती आए “पार्श्वमणि” जिनका करते है नितवन्दन बारम्बारा
वो विद्या गुरु हमारा 2
रचयिता
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा (राज) 9414764980