उत्तर प्रदेश सहारनपुर “जिनागम पंथ जयवंत हो” और आचार्य गुरुवर विमर्शसागर जी महामुनिराज के गगनभेदी जयकारों से सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान हो गया जब धर्मनगरी शामली से पधारे दो शतक (200) जिनागमपंथी गुरु भक्तों ने सहारनपुर के जैन बाग प्रांगण में पदार्पण किया। प्रत्येक सिर पर थी जिनागम पंथ की टोपी और हर हाथ में था जिनधर्म का ध्वज अथवा आचा गुरुवर का चित्र । परिपूर्ण हर्ष-उत्साह-उमंग के साथ किया अपने नगर शामली में आने का भावभीना निवेदन – आग्रह…..जी हाँ, शामली में चल रहे आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज के दो आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री विव्रत सागर जी – विश्वार्थसागर जी मुनिराज के मंगल मय चातुर्मास ने शामली जैन समाज की धर्म पिपासा को और भी वृद्धिंगत कर दिया है। श्रद्धाल भक्तगण आशान्वित हैं कि जब आचार्य संघ के दो मुनि रत्नों ने नगर में धर्म की बहार ला दी है तो जब स्वयं आचार्य भगवन्त अपने विशाल चतुर्विध संघ सहित शामली पधारेंगे तब तो मानो साक्षात भगवान का समवशरण ही हमारे नगर में लग जायेगा। 05 अक्टूबर, रविवार की प्रातः बेला में परमपूज्य भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विर्मासागर महामुनिराज की धर्मसभा में शामली जैन समाज के अध्यक्ष श्री आलोक जैन के साथ सभी कार्यकारिणी ने श्रीफल समर्पित करते हुए आग्रह किया कि हे गुरुवर ! चातुर्मास उपरान्त आप संघ सहित विहार करते हुए शामली नगर पधारे, हम सभी राष्ट्रीय स्तर पर आपका अवतरण दिवस मनाना चाहते हैं। आचार्य श्री ने अपने मंगल प्रवचन में कहा- आज जब शामली वालों ने दीप प्रज्वलन किया तब मुझे तो हर भक्त प्रज्वलित दीप की तरह दिखायी दे रहा था। वास्तव में जहाँ इतने सारे प्रज्वलित दीप हों वहाँ बुझा हुआ दीप भी प्रज्वलित हो जाया करता है। हम निग्रन्य मुनिराजों को यदि अपनी ओर कोई खींच सकता तो वह है एकमात्र “भक्ति” । भक्ति से तो तीर्थंकर भगवान भी समवशरण सहित खिंचे चले आते हैं। आपने बड़ागांव में अपनी भक्ति दिखायी थी उसका आपको फल दो मुनिराजों के चातुर्मास के रूप में मिला, आप अपना कर्तव्य भक्ति करते रहिए, समय आने पर आँपको और भी लाभ प्राप्त होता रहेगा।
भक्ति वह ताकत है जो भगवान को भी अपनी ओर खींच लेती है- भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
