कृषि विज्ञान केन्द्र, ग्वालियर द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन दिनांक 16 अगस्त, 2025 को केन्द्र के परिसर से गाजरघास पर रासायनिक उर्वरकों का छिड़काव कर किया गया। इस सप्ताह भर चले इस कार्यक्रम के अंतिम दिवस आज दिनांक 22 अगस्त, 2025 को ग्वालियर जिले के घांटीगांव ब्लॉक के रेंह का पुरा गाँव में गाजरघास जागरूकता दिवस मनाया गया, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और स्कूली छात्रों सहित कुल 72 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों के लिए विभिन्न गतिविधियाँ प्रदर्शित की गईं, जैसे गाजरघास के उन्मूलन के लिए उपाय, जैविक नियंत्रण उपाय, जैसे मैक्सिकन बीटल (ज़ाइगोग्रामा बाइकोलोराटा) की पहचान, गाजरघास से खाद तैयार करना एवं उसका उपयांग आदि पर विस्तृत जानकारी दी गई।
कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शैलेन्द्र सिंह कुश्वाह ने बताया कि कैसे गाजरघास खरपतवार हमारी फसल भूमि, मनुष्यों, पशुओं और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने गाजरघास खरपतवार के प्रभावी भौतिक, जैविक और रासायनिक प्रबंधन रणनीतियों की जानकारी देते हुए बताया कि कैसे गाजरघास मनुष्यों और पशुओं में अनेक बीमारियाँ पैदा करता है, और इन समस्याओं से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे फूल आने से पहले गाजरघास खरपतवार के बायोमास का उपयोग पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने खरपतवार के पारिस्थितिक प्रबंधन के लिए गाजरघास खरपतवार के प्राकृतिक प्रतिस्पर्धियों/शत्रुओं की पहचान करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की।
केन्द्र की वैज्ञानिक (कृषि वानिकी) डॉ. अमिता शर्मा ने उपस्थित लोगों बताया कि कैसे गाजरघास खरपतवार का उपयोग जैविक और प्राकृतिक खेती में हरी खाद, लाइव मल्च, खाद के रूप में किया जा सकता है। प्रतिभागियों, विशेषकर बच्चों ने भी विशेषज्ञों के साथ अपने विचार और प्रश्न साझा किए।
केन्द्र के वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. राजीव सिंह चौहान ने प्रतिभागियों को गाजरघास के हानिकारण प्रभाव बताते हुए, इसके नियंत्रण करने के जैविक एवं रासायनिक विधियों को विस्तारपूर्वक समझाया, जिसमें खरपतवार की छोटी अवस्था में 15 प्रतिशत नमक का घोल बनाकर छिड़काव करना, फूल आने से पहले एवं अधिक मात्रा में फैल जाने पर खाली अफसलीय क्षेत्रों में मेड़ पर ग्लाइफोसेट 41 फीसदी दवा का छिड़काव करने से इसको नियंत्रण किया जा सकता है। साथ ही नाडेप विधि से खाद बनाने की जानकारी दी।
कार्यक्रम के अंत में किसानों की धान, बाजरा, मूंग, तिल एवं अन्य फसलों में आने वाली समस्याओं का भी समाधान वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। केन्द्र द्वारा आयोजित गाजरघास जागरूकता सप्ताह कार्यक्रम में कुल 150 कृषकों एवं छात्रों ने भाग लिया। डॉ. चौहान ने चर्चा के अंत में सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।