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शुद्ध मन पापों से रहित होता है-स्वस्तिभूषण

जिला जेल मुरेना में कैदियों को दिया उदबोधन

मुरेना । मन को शांत रखना बहुत बड़ी साधना है । इच्छाएं मन को अशांत करती हैं । आज भौतिक वादी युग में अशांति का एक कारण मोवाइल भी है । मोवाइल का जितना ज्यादा दुरुपयोग करोगे, मन उतना ही ज्यादा अशांत रहेगा । व्यक्ति मोवाइल में जिस तरह के चित्र देखता है, फिर उसे पाने की लालसा उसके मन में जाग्रत होती है । उन इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह गलत काम करने लगता है । इसे ही पाप कहा जाता है । जब गलत देखोगे तो मन में गंदगी एकत्रित होगी । जब गलत नहीं देखोगे तो मन शुद्ध रहेगा । शुद्ध मन पापों से रहित होता है । व्यक्ति अपनी इच्छापूर्ति के लिए चोरी करता है, दूसरों के धन को हड़पता है । आप विचार कीजिये ज्जि व्यक्ति के धन को आपने हड़पा है या जिस व्यक्ति के यहां आपने चोरी की है वह कितना दुखी हुए होगा । जब वह दुखी है तो आप सुखी कैसे रह सकते हो । आप किसी न किसी अपराध में यहां कैद हैं । आपको अपने किये अपराध का प्रायश्चित करना चाहिए । बन्दीगृह में बंद रहते हुए भी प्रभु भक्ति करते हुए, मन की शुद्धि करते हुए नेक इंसान बनने का प्रयास करना चाहिए । उक्त विचार जैन साध्वी गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने जिला जेल मुरेना में कैदियों को संबोधित करते हुये व्यक्त किये ।
पूज्य गुरुमां ने कैदियों से कहा कि मन बचन काय से अपराध और पाप होते हैं । पाप की मुख्य जड़ मन है । जिस प्रकार घर की सफाई हम प्रतिदिन करते हैं, उसी प्रकार हमें प्रतिदिन मन की सफाई भी करना चाहिए । कहा गया है कि गन्दे घर में लक्ष्मी का वास नहीं होता, उसी प्रकार गन्दे मन में ईश्वर का वास नहीं होता । मन को साफ रखने के लिए ईर्ष्या, राग, द्वेष से दूर रहकर अपने इष्ट की आराधना करना चाहिए । मन को साफ रखने के लिए प्रयास और मेहनत की आवश्यकता होती है । वाहर का कचरा तो सबको दिखता है, किंतु मन का कचरा तो हमें स्वयं देखना होगा । क्रोध, मान, माया, लोभ, हिंसा, चोरी, कुशल और परिग्रह के कारण ही मन अशांत रहता है । हम अपने मन में वैर, राग, द्वेष रूपी कचरे को इकट्ठा किये रहते हैं । यही पाप का मूल कारण हैं । जब व्यक्ति को क्रोध आता है तो वह स्वयं तो जलता ही है, दूसरों को भी जलाता है । अधिकांशतः अपराध क्रोध में ही होते हैं । आपको किसी ने बुलाया नहीं, आपको किसी ने पूछा नही, आपकी बात किसी ने मानी नहीं, बस आपको बुरा लग गया और क्रोध आ गया । क्रोध आने का मुख्य कारण आपका अहंकार है । व्यक्ति अपने अहंकार और अपनी नाक ऊची रखने के लिए क्रोध करता है और क्रोध के वशीभूत होकर वह अपराध करता है । क्रोध में हम यह भी नहीं देखते की सामने कौन हैं । हम अपराध और पाप कर बैठते हैं । क्रोध शांत होने पर हमें अपने किये पर पछतावा भी होता है ।
जैन साध्वी श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने कैदियों को समझाते हुए कहा कि आप सभी किसी न किसी अपराध में यहां सजा काट रहे हैं । आपने जाने-अनजाने में जो भी पाप किये हैं, यहां बन्दीगृह में रहते हुए आप सभी उनका प्रायश्चित करें । अपने इष्ट की आराधना करते हुए नेक इंसान बनने की कोशिश करें और भविष्य में कभी भी अपराध न करने की शपथ लें।

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