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रागायन की मासिक संगीत सभा, सुरों की पिचकारी से उड़ी रंगों की फुहार

ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन की मासिक संगीत सभा ” राग पंचमी “में आज सुरों से होली खेली गई। रंग पंचमी के अवसर पर यहाँ सिद्धपीठ श्रीवगंगदास जिबकी बड़ी शाला में आयोजित इस सभा में रागदारी पर केंद्रित पारम्परिक होली का गायन हुआ। सभा में सभी कलाकरों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी और होली रंग पंचमी को साकार किया।

शुरू में रागायन के अध्यक्ष एवं शाला के महंत पूरण वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवकदास जी ने सरस्वती एवं गुरु पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य एवं प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के संरक्षक आशीष प्रताप सिंह राठौड़, वरिष्ठ समाजसेवी ऊधम सिंह यादव, श्रीराम शिरढोनकर विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम में आशीष प्रताप सिंह राठौड़ ने शाला के महंत स्वामी रामसेवकदास जी का पुष्पहार एवं शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया।
सभा का शुभारंभ सुश्री संजीवनी पालखे के गायन से हुआ। उन्होंने सिंदुरा काफी के सुरों में पगी होली की बंदिश -” होरी खेलन जात कन्हैया” को बड़े सलीके से गाया। आपके साथ तबले पर संजय आफले एवं हारमोनियम पर यश देवले ने साथ दिया।
अगली कड़ी में जाने माने संगीत गुरु संजय देवले ने भी होली की बेहतरीन प्रस्तुति दी। उन्होंने त्रिताल भीमपलासी की बंदिश -” मलत गुलाल लाल होली में “, और कलावती की बंदिश-‘ तोसे नाहीं खेलूं होली’ को रागदारी की बारीकियों के साथ पेश किया। आपके साथ तबले पर अविनाश महाजनी और हारमोनियम पर नवनीत कौशल ने साथ निभाया।
सभा के अगले कलाकार थे टिकेन्द्रनाथ चतुर्वेदी। उन्होंने भी दो पारम्परिक होली की प्रस्तुति दी। राग काफी पर आधारित दीपचन्दी में निबद्ध होली की रचना-जिन जाओ री आज कोऊ पनिया भरन और खेलें नगर अयोध्या में फाग रघुवर जानकी।” को बड़े ही मनोयोग से गाया। आपके साथ तबले पर अविनाश महाजनी ने संगत की।
कार्यक्रम में अगली प्रस्तुति मनीष शर्मा जी की रही। उन्होंने एक पारंपरिक होली की रचना -” आज खेलो होरी गुइयां” को बड़े ही रंगीले अंदाज में पेश किया। एक भजन से उन्होंने समापन किया। आपके साथ योगेंद्र सिंह सिकरवार ने तबले पर साथ दिया। अगली प्रस्तुति में नवनीत कौशल ने काफी पर आधारित होली “काहे करे बरजोरी” और “सरर सरर पिचकारी मारी” की रंजक प्रस्तुति दी।
सभा को आगे बढ़ाया ग्वालियर के वरिष्ठ संगीत साधक पंडित महेशदत्त पांडे ने । वे खयाल गायन में जितने निपुण हैं उतने ही सलीक़े से उप शास्त्रीय संगीत भी गाते हैं। पारम्परिक होरी गायन भी उन्होंने बड़े रंजकता के साथ पेश किया। राग काफी में दादरा में निबद्ध ” डार गयो नंद को अबीर” रचना उन्होंने बड़े ही मनोयोग से पेश की। और उसके बाद “मैं कैसे होरी खेलूं सांवरिया के संग” को कहरवा की विविध लयकारियों के साथ पेश किया।
इसके बाद सुधाकर चतुर्वेदी ने अपने गायन की प्रस्तुति दी। उन्होंने दो रचनाएं पेश की। पहली रचनाबके बोल थे – सजन ढिंग चलो गुइयाँ आज खेलें होरी। जबकि दूसरी रचना थी -” रंग डारो श्याम” सुधाकर जी ने दोनों ही रचनाएं बड़े ही सहज अंदाज़ में पेश की। आपके साथ तबले पर मनीष शर्मा ने साथ दिया।

सभा का समापन वरिष्ठ संगीत साधक राजेन्द्र सिंह सिकरवार के होरी गायन से हुआ। राजेन्द्र जी की प्रस्तुति भी मणिकांचन रही।उन्होंने काफी में दीपचंदी की बंदिश – कोई ऐसी होरी खिलावे जासों आवागमन मिट जावे ” को बड़े ही माधुर्य के साथ पेश किया। इसके बाद रंगीले रंग महल में खेल रहे दोऊ फाग और होरी खेलें रघुवीरा जैसी रचनाएं पेश कर सभा को उत्कर्ष पर पहुंचाया। इस प्रस्तुति में योगेंद्र सिकरवार ने तबले पर साथ दिया।

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