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सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए उपासना आवश्यक-स्वस्तिभूषण
विश्व शांति महायज्ञ एवं रथयात्रा के साथ विधान का हुआ समापन

मुरेना (मनोज नायक) जैन धर्म में श्रावक षट आवश्यक कहे हैं । जैन धर्म के अनुयायियों को छः आवश्यक नियमों का पालन बताया गया है । देव पूजा, गुरू उपासना, संयम, तप और दान । इन षट आवश्यकों में सब कुछ आ गया । इसमें क्रम भी बताया गया है कि कब क्या करना है । जैसा बनना है, पहिले उसकी उपासना करो । सच्चा सुख चाहिए तो जिन्होंने उसे प्राप्त कर लिया है उसकी पूजा करो । जो सुख की प्राप्ति के लिये घर परिवार छोड़कर दीक्षा लेकर आगे बढ़ गए उनकी सेवा करो । फिर उसका रास्ता क्या है, स्वाध्याय करो । जब धर्म का अर्थ समझ में आ गया तब पापों से बचने के लिए संयम का पालन करो । जब आपने अपनी आत्मा की रक्षा की बाढ़ लगा ली, तब तप की शुरुआत करो । तप के बारह भेद हैं, उन्हें समझकर एक एक, दो दो तप रोज करो और इकठ्ठा किया मोह कम करके उसका दान शुरू करदो । उक्त विचार जैन साध्वी गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी ने जैन बगीची में आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान के समापन पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये ।
मध्यप्रदेश ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष श्री गिर्राज डंडोतिया, मध्यप्रदेश अल्पसंख्यक वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री रघुराज सिंह कंषाना एवं मध्यप्रदेश शासन के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री श्री रुस्तमसिंह जी ने पूज्य गुरुमां गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी के श्री चरणों में श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया । जैन समाज की ओर से दोनों माननीयों का सम्मान किया गया ।
विगत दिबस शांतिधारा का सौभाग्य श्री कैलाशचन्द नीरजकुमार हार्दिक कार्तिक जैन चांदी वाले परिवार आगरा को प्राप्त हुआ । आज प्रातः दीप प्रज्जवलन नरेंद्रकुमार कुलभूषण “रिंकू” जैन (जैना टायर) साहुला परिवार मुरेना को प्राप्त हुआ । अभिषेक के पश्चात शांतिधारा करने का सौभाग्य श्री जयकुमार मुनेंद्र जैन (पलपुरा वाले) मुरेना एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य श्री पदमचंद गौरव जैन (चैटा वाले) परिवार को प्राप्त हुआ ।
गणिनी आर्यिका श्री लक्ष्मीभूषण, गणिनी आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण, गणिनी आर्यिका श्री अंतसमती माताजी के सान्निध्य में आठ दिवसीय 125 मंडलीय श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान के अंतिम दिन विश्व शांति की कामना के साथ महायज्ञ किया गया । महायज्ञ में 251 लोगों ने 1008 मंत्रों की आहुति दी । महायज्ञ के बाद श्री जिनेन्द्र भगवान को रथ पर विराजमान कर भव्य शोभायात्रा निकाली गई । विशाल एवं भव्य शोभायात्रा में सात घोड़ा बग्घियों में इंद्र इंद्राणियों सहित सभी पात्र विराजमान थे । जैन धर्मावलम्बी भगवान के रथ को स्वयं अपने हाथों से खींच रहे थे । महिलाएं एवं युवा साथी भक्ति नृत्य के साथ जिनेन्द्र प्रभु की जय जयकार करते हुए चल रहे थे । शोभा यात्रा की वापिसी पर श्री 1008 जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक किया गया । कार्यक्रम के समापन पर सामूहिक वात्सल्य भोज की व्यवस्था नरेंद्रकुमार कुलभूषण जैन जैना टायर साहुला परिवार द्वारा की गई थी ।