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जिनेन्द्र भगवान की रिद्दियों के 32 अर्घ समर्पित किए, भगवान महावीर स्वामी का किया अभिषेक – महापौर शोभा सिकरवार हुईं विधान में शामिल, लिया माताजी का आशीर्वाद
मुरार में आठ दिसवीय श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान का तीसरा दिन

ग्वालियर 1 मार्च । मुरार स्थित जैन धर्मशाला में चल रहे आठ दिवसीय श्री सिद्वचक्र महामंडल विधान में आज सौधर्म इन्द्र अतीश जैन के द्वारा भगवान अभिषेक किया गया तथा भगवान की शांतिधारा कुबेर इन्द्र डॉ हिमांशु जैन ने गई । नगर की महापौर शोभा सिकरवार, चेम्बर ऑफ कॉमर्स के सचिव दीपक अग्रवाल, भााजपा के पारस जैन, विनोदी जैन, शैलेश जैन ने भगवान महावीर स्वामी के चित्र के समीप दीप प्रज्विलत किया। इस अवसर पर शशी जैन, रिचा जैन, नैंसी जैन, नविता जैन, बबीता जैन, विनय जैन ने महापौर का शॉल श्रीफल के साथ अभिनंदन स्वागत किया। इस अवसर पर महापौर ने माताजी के चरणों में श्रीफल अर्पितकर आशीर्वाद लिया। आयोजन कमेटी प्रतीक जैन, प्रवीण जैन, पं.राकेश जेन ने अन्य अतिथियों का स्वागत किया।
विधान को पूजन करते हुऐ वहां मौजूद श्रृदालुओं जैन भजन – रंगमा…रंगम…रंगमा रे प्रभू थारे ही रंग में रंग गयो रे… पर नृत्य किया। तदपश्चात पूज्य माताजी के सानिध्य में एवं प. राकेश जैन आगरा के मार्गदर्शन में जिनेन्द्र भगवान की 64 रिद्दियों के 32 अर्घ भक्तिभाव से समर्पित किए गये। पूज्य माताजी को शास्त्र भेंट महापौर ने किया।
नूत्य नाटिका का हुआ मंचन- सायंकाल समाज के वरिष्ठ दिनेशचन्द्र उपेन्द्र जैन, विकास जैन के निवास से गाजेबाजों के साथ आरती की थाली लाई गई जहां भगवान की महाआरती उतारी। वहीं दिल्ली के नाटय कलाकार मनोज ‘शर्मा के द्वारा नृत्य नाटिका का मंचन किया गया।
आज चढेंगे 64 अर्घ, माताजी के होंगे प्रवचन – आयोजन के मीडिया प्रभारी ललित जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि गुरुवार को प्रात 6.30 बजे से भगवान का अभिषेक पूजन होगा! आज विधान में भगवान के मूल गुणों के 64 अर्घ समर्पित किये जायेगें। 8.30 बजे से पूज्य माताजी के मंगल प्रवचन होंगे।
– कहीं तुम सुख की खोज में दुख के बीज तो नहीं बो रहे
– प्रभू की वाणी कानों से सुनो, हृदय में उतारो, और व्यवहार में लाओ
– चाह सुख की करते हो, कर्म दुख के संचय का करते हो – आर्षमति माताजी
विधान में धर्मसभा को सम्बोधित करती हुई पूज्य गाणिनी आर्यिका आर्षमति माताजी ने कहा कि दुनियां में अधिकांश पाप कर्म शरीर के लिए किए जाते हैं तो पाप कर्म के उदय आने पर दुख भी तो यह शरीर ही भोगेगा। इंसान कितना नासमझ है कि संसार का प्रत्येक इंसान सुख की चाह रखता है लेकिन कार्य ऐसे करता है जिससे दुखों का आश्रव हो। अरे जब आम की फसल चाहते हो तो आम ही बोने पड़ेंगे, नीम के पेड़ में आम कैसे आ सकते हैं। माताजी ने कहा कि प्रभू की वाणी कानों से सुनो, हृदय में उतारो और उसे व्यवहार में लाओं तभी तुम्हारे जीवन में बदलाव आयेगा। जीवन को समझने का प्रयास करो, मौत आ जाए उससे पहले जीवन को समझ लो। अर्थी जले उससे पहले जीवन का अर्थ समझ लो। आचार्यश्री ने कहा कि तुम सुनने की आदत ड़ालो आज की पीढ़ी में सहनशक्ति की कमी आ रही है। जरा सी बात पर उत्तेजित होने से तुम्हारा स्वयं का नुकसान होगा। अपना दृष्टि को संसार से हटाकर स्वयं तक ले जाने का अभ्यास करो तभी इस मानव जीवन की सार्थकता होगी।