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धर्म वही कर सकता है जो निःसंक हो – भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श जी महामुनिराज
दो संतो का हुआ एक मंच पर मांगलिक प्रवचन

भिण्ड नगर की धरा तब धन्य हो उठी जब धर्मनगरी भिण्ड में परम पूज्य जिनागम पथ प्रवर्तक भावलिंगी संत आदर्श श्रमणाचार्य गुरूवर श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज के पावन पवित्र चरण पड़े। गुरुवर के आगमन से मानो सभी नगरवासियों में धर्म की वाढ आ गई हो । पूज्य आचार्य श्री के 24 वें मुनि दीक्षा रजत संयमोत्सव पर्व को लेकर सम्पूर्ण नगर में अत्यंत हर्ष-उत्साह देखा जा रहा है। धर्मनगरी भिण्ड से प्रारंभ होगा आचार्य श्री विर्मश सागर । जी महामुनिराज का “रजत विमर्श संयमोत्सव ।
10 दिसम्बर 2011, शनिवार को परम पूज्य आचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज ससंघ ) मुनिश्री प्रतीक सागर जी मुनिराज के निवेदन पर महावीर चौक पर स्थित श्री 1008 पार्श्वनाथ जिनालय में पधारे। मुनिश्री ने पूज्य आचार्य श्री विमर्शसागर जी का भव्य स्वागत किया। आचार्य श्री के साथ मुनिश्री के प्रवचन भिण्ड नगर के महावीर चौक पर हुए। सर्वप्रथम विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रतीक सागर जी ने कहा- आज हम यहां सत-संत मिलकर बैठे है तो आपको कितनी प्रफुल्लता हो रही है। ऐसा ही वात्सल्य यदि आपके बीच पैदा हो जाए तो आपका घर स्वर्ग बन जाएगा । पूज्य आचार्य श्री का वात्सल्य इतना है कि वह में हमें बार-बार मिलने को मजबूर कर देता है। मैं चाहता हूँ कि पूज्यश्री का ऐसा ही वात्सल्य
मुझे हमेशा मिलता रहे! मुनिश्री के मंगल उद्बोधन के पश्चात् परमपूज्य आचार्यश्री विमर्शसागर जी मुनिराज का महामांगलिक उद्बोधनः प्राप्त हुआ, आचार्य श्री विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा
भगवान महावीर ने कहा- यह जीव संसार में कर्म से बंधता है उसका कारण है राग भाव। जहाँ यह राम परिणाम होता है वहाँ निश्चित तौर पर द्वेष पाया ही जाता है। एक पति अपनी पत्नी के गुणगान करते नहीं थकता लेकिन जब भोजन करने बैठता है और यदि भोजन में नमक कम है तो पत्नी को अपने क्रोध का ग्रास बना लेता है। यदि पत्नी से प्रेम है तो जब क्रोध क्यों ? इसका तात्पर्य है व्यक्ति “किसी वस्तु से राग नहीं करता अपितु अपने अंदर वस्तु के प्रति होने वाले राग अथवा द्वेष करता है। श्रीराम जो सीता हरण के बाद सीता को प्राप्त करने के लिए दर-दर वन-वन भटक रहे और जब सीता प्राप्त हो गई तो एक चांबी के कहने मात्र से श्री राम ने सीता को जंगल में छुड़वा दिया। इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति किसी व्यक्ति से राग नहीं करता मात्र अपने ही राग से राग करता है।
आचार्य श्री ने सुखी जीवन जीने का उपाय धर्मसभा में दिया, कहा- जीवन सुख पूर्वक जीना है तो अपने जीवन में कभी शंका के पर्प को पैदा मत होने देना। क्योंकि धर्म नहीं कर सकता है जो निःशक होता है । सुखी जीवन के लिए ऐसा कार्य कभी मत करना जिसके बाद आपको पछताना पड़े।
11 दिसम्बर, रविवार को निकलेगी विशाल बाइक रैली । गणिनी आर्यिका विशुद्ध मती माताजी करेगे आत्याय संघ का दर्शन | 12 दिसम्बर को घटयात्रा पहुँचेगी कीर्तिसाम होगा आचार्यश्री का 13वाँ आचार्य पदारोहण / 13 दिसम्बर को होगी शान्तिनाथ भगवान की दिव्याचना। 14 दिसम्बर को होगा दीक्षा भूमि पर दीक्षा का रजत महोत्सव रात्रि काल में होगा प्रसिद्ध कलाकार रुपेश जैन द्वारा भजन प्रथमा