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भिंड नगर में गूंज उठा “जीनागामा पंथ जयवंत हो

जीवन में उन्नति का आधार है- उत्साह /
भावलिंगी (नंत श्रमणाचार्य श्री 108विमर्शसागर जी महामुनिराज •
भिंड नगर में गूंज उठा “जीनागामा पंथ जयवंत हो” !
“जीवन है पानी की बूंद “महाकाव्य के मूल रचयिता, जिनकी सरलता- वात्सल्य भाव से मनुष्य तिर्यंच सभी प्राणी चुम्बक की भाँति खिंचे चले आते हैं, करुणा की प्रतिमूर्ति, जिनागम पंथ प्रवर्तक भावलिंगी संत आदर्श श्रमणाचार्य गुरुदेव श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ससंघ (26 पीढ़ी) धर्म नगरी भिवड में विराजमान हैं। सम्पूर्ण नगरी में धर्म की लहर है। आचार्य श्री के मांगलिक प्रवचनों से पूरा भिण्ड नगर लाभान्वित हो रहा है। 07 दिसम्बर को आचार्यश्री अपने चतुर्विध संघ सहित महावीर गंज चौराहे पर पहुँचे और वहां विशाल धर्मसभा को जीवन में उन्नति दिलाने वाले मांगलिक प्रवचनों द्वारा संबोधित करते हुए कहा –
हर मनुष्य अपने जीवन में उन्नति के द्वार खोलना चाहता है, वह चाहे शैक्षणिक क्षेत्र हो, पारिवारिक, सामाजिक, व्यापारिक क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में व्यक्ति उन्नति चाहता है किन्तु मात्र चाहने से उन्नति नहीं मिल जाती। उन्नति के लिए हमें अपने अंदर उत्साह को पैदा करना होगा। जीवंत व्यक्ति की यही पहिचान है कि वह उत्साह को बरकरार रखते हुए कुछ अपने जीवन कर गुजर जाए । आज का आदमी निराशा में डूबा है वह अपने को खुशनुमा माहौल में शामिल = होने के योग्य नहीं समझ पाता । निराशा मनुष्य के जीवन में वह अभिशाप है जो व्यक्ति को जीते जी मुर्दा बना देती है। इसीलिए मैं कहता हूँ – अपने जीवन में लक्ष्य बनाना सरल है किन्तु अपने लक्ष्य को बरकरार बनाए रखना बहुत कठिन है। लक्ष्य को बरकरार बनाए रखने के लिए जरूरत है अपने लक्ष्य के प्रति उत्साह की, अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव की।
मनुष्य के जीवन में जब धर्म की अनुभूति होती है तो अंदर से उत्साह की लहर उठती है और वही लहर व्यक्ति को उन्नति के शिखर तक ले जाती है। धर्म वह वस्तु है जिसे स्वीकार करने से मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में भी अपने मनोनुकूल साधन प्राप्त करता है और निश्चित ही वह भविष्य में भी उन्नति के सोपानों को स्पर्श करता है।
जिस लक्ष्य की दिशा में आप आगे बढ़ रहे हैं उस दिशा में आपको प्राप्त होने वाली छोटी भी सफलता में आप स्वयं को धन्यवाद दें, स्वयं को आप प्रोत्साहित करें तो निश्चित ही आपका उत्साह दोगुना हो जाएगा और आप अपने लक्ष्य की दिशा में द्रुत गति से बड़ते चले जाएंगे। फिर आपको सफलता का इंतजार नहीं करना होगा अपितु सफलता स्वयं आपका इंतजार करेगी । !
… … सोनल जैन (भिण्ड)