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अपने चित्‍त में ऐसे चित्र का दर्शन करो जो चारित्र बन जाए – विमर्श सागर महाराज

भिण्‍ड/ भारत गौरव गणाचार्य विराग सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य विमर्श सागर महाराज ने चैत्‍यालय जैन मंदिर, ऋषभ भवन में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि मनुष्‍य के मन में अनेक प्रकार के चित्र उभरा करते है, ऐसा कोई समय नहीं जब हमारे चित्‍त में चित्र न उभर रहा हो। भूख लगने पर भोजन के चित्र, प्‍यास लगने पर पानी के चित्र, शीत ऋतु में गर्म पदार्थों के चित्र, मनुष्‍य की जैसे-जैसे आयु में वृद्धि होती है तो पुरूष के मन में स्‍त्री के चित्र और स्‍त्री के मन में पुरूष के चित्र और भी न जाने कितने प्रकार के चित्र मनुष्‍य के मन में उभरते रहते हैं। भगवान महावीर स्‍वामी कहते हैं – चित्‍त मं ऐसा भी चित्र उभरना चाहिए जिसके सामने सभी चित्र फीके पड़ जाये, व‍ह चित्र उभरता है चारित्र से।
मुनि श्री ने आगे कहा कि जब-जब आप निर्गन्‍थ वीतरागी संत के पास आकर बैठते है त‍ब निश्चित ही आप चारित्र के निकट बैठे होते हैं क्‍योंकि आप चारित्रवान के निकट बैठे हैं और निश्चित तौर पर आपके चित्‍त मं भी उन जैसे चारित्र के चित्र उभरने लगते हैं। जो आपको एक दिन भगवान महावीर जैसा उत्‍कृष्‍ट चारित्र प्रदान प्रदान करने वाला होगा। एक बार के सानिध्‍य में भले ही आपको उस उत्‍कृष्‍ट चारित्र की प्राप्ति न हो किन्‍तु निरंतर उस चारित्र का दर्शन करने से आपको उन वीतरागी संतों जैसे निर्मल चारित्र की प्राप्ति अवश्‍य होगी। जैसे एक विशाल पत्‍थर में एक घन लगने से वह पत्‍थर नहीं टूटता है किन्‍तु लगातार उसमें घन पडने से वह निश्चित ही टूट जाता है वैसे ही चारित्रवान की संगति से पहले क्षण में भी आपके अंदर चारित्र प्रकट हुआ है जैसे पहले घन ने भी पत्‍थर को तोड़ा था और धीरे-धीरे आपका वह क्षणिक चारित्र भी पूर्णता को प्राप्‍त हो जाता है। आपकी भावना ही आपको अपने लक्ष्‍य तक पहुँचाती है।

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