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रागायन संगीत समारोह- दाजी ई याद में सजा सुरों का मेला

ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगीत समारोह के अंतिम रविवार को भी सुर साज के मुख्तलिफ रंग देखने को मिले। समारोह का दूसरा दिन ग्वालियर घराने के प्रख्यात गायक पंडित एकनाथ सारोलकर ( दाजी ) की स्मृतियों को समर्पित रहा। समारोह में आए स्थानीय और मेहमान कलाकारों ने दाज़ी को स्वरंजलि अर्पित की।
रागायन के अध्यक्ष एवम सिद्धपीठ श्रीगंगादास जी की बड़ी शाला के महंत स्वामी रामसेवकदास जी ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर एवम गुरु पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात उन्होंने दाजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
सांगीतिक प्रस्तुतियों का आगाज दिल्ली से पधारे मोनीदीप मित्रा के हवाईन गिटार वादन से हुआ। मोनीदीप युवा और संभावनाशील कलाकार हैं। उन्होंने अपने वादन के लिए राग पूरिया कल्याण का चयन किया। आलाप जोड़ झाला से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो गतें पेश कीं। मध्य और द्रुत लय की दोनों ही गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। दोनों गतों को बजाने में मोनीदीप जी ने रागदारी की शुद्धता का खयाल रखते हुए अपने कौशल का भरपूर परिचय दिया। आपके वादन में गायकी अंग के साथ तंत्रकारी का सुंदर समावेश देखने को मिलता है। बहरहाल, उन्होंने अपने वादन का समापन दादरा में पीलू की धुन से किया । आपके साथ तबले पर सागर से तशरीफ लाए डॉ राहुल स्वर्णकार ने मिठास भरी संगत का प्रदर्शन किया।
सभा के दूसरे कलाकार थे बनारस के डॉ इंद्रेश मिश्रा। पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के सुयोग्य शिष्यों में शुमार इंद्रेश जी ने अपने गायन की शुरुआत राग दरबारी कान्हड़ा से की। संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश की। एक ताल मे विलंबित बंदिश के बोल थे -” नाद अपार उदधि गंभीर” जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे -” हार गुंद लाई मालनियां” शहाना कान्हड़ा से गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने तीनताल में बंदिश गाई – “करत सिंगरवा वो तो बार बार” । और फिर शुहा कान्हड़ा में त्रिवट से आपने अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। मिश्र खमाज की ठुमरी -” सांवरे ने जमुना तट छीनों मेरो हार” भी आपने खूब रंजकता से पेश की। आपके साथ तबले पर डॉ महेंद्र प्रसाद शर्मा और हारमोनियम पर पंडित देवेंद्र वर्मा ने संगत की।
सभा के अगले कलाकार थे ग्वालियर के युवा वायलिन वादक अनिकेत तारलेकर। पंडित एकनाथ सारोलकर के पौत्र अनिकेत ने राग जोग में अपना वादन पेश किया। अनिकेत ने इस राग में विलंबित और द्रुत लय की गतें तीनताल में पेश की। आपके साथ तबले पर डा विनय विंदे ने सधी हुई संगत का प्रदर्शन किया।
गायन का समापन ग्वालियर घराने के वरिष्ठ संगीत साधक पंडित महेशदत्त पांडे के खयाल गायन से हुआ।पंडित सीतारामशरण महाराज के शिष्य महेशदत्त जी ने राग अभोगी कान्हड़ा से गायन का शुभारंभ किया। सुंदर आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश की। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे – “सुध न रही” जबकि तीनताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे -” बैरन भई रतियाँ” दोनों ही बंदिशों को आपने बड़े ही कौशल के साथ गाया। राग की बढ़त करते में एक एक सुर खिलता गया और राग का असर तारी हो उठा। तानों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। पांडे जी ने सारोलकर जी की पसंद के राग हंसध्वनी से उन्हें स्वरांजली अर्पित की। बंदिश के बोल था -” बोलत नाहीं काहे मोसे” तीनताल मध्यलय की इस बंदिश को भी आपने बड़े ही रंजक अंदाज में पेश किया। गायन का समापन आपने भैरवी से किया। आपके साथ तबले पर अनंत मसूरकर एवम हारमोनियम पर संजय देवले ने साथ दिया जबकि गायन में यश देवले ने साथ दिया।
पांडे पंडित सारोलकर सम्मांबसे विभूषित
ग्वालियर घराने के वरिष्ठ संगीत साधक पंडित महेशदत्त पांडे को पंडित एकनाथ सारोलकर स्मृति सम्मान से विभूषित किया गया। रागायन के अध्यक्ष एवम शाला के महंत स्वामी रामसेवकदास जी ने शॉल श्रीफल एवं सम्मान पत्र प्रदान कर पांडे जी को सम्मान से विभूषित किया। इस अवसर पर सारोलकार जी की सुपुत्री और ग्वालियर घराने की गायिका डॉ वीणा जोशी , अनंत महाजनी, ब्रह्मदत्त दुबे, विशेष रूप से उपस्थित थे।

                    

 

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