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बारिश की बूंदों की सुरों के साथ आनंददायी जुगलबंदी

ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन द्वारा यहां सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला में आयोजित दो दिवसीय संगीत समारोह का शनिवार को भव्य शुभारंभ हुआ। पहले दिन पंडित महीपत राव महाजनी जी की याद में सजी सुरों की महफिल में एक से बढ़कर एक सांगीतिक प्रस्तुतियों ने रसिकों को मुग्ध कर दिया। एक तरफ मौसम की बारिश तो दूसरी तरफ सुरों की बारिश ने संगीत का ऐसा ताना बाना बुना कि आनंद का इंद्रधनुष खिल उठा।
शुरू में रागायन के अध्यक्ष एवम सिद्धपीठ श्रीगंगादास जी की बड़ी शाला के महंत पूरण वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवकदास जी महाराज ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर एवम गुरु पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके पश्चात पंडित महीपत राव महाजनी एवम पंडित एकनाथ सारोलकर जी के चित्र पर माल्यार्पण किया। इस अवसर पर श्री अनंत महाजनी, पंडित महेशदत्त पांडे, डॉ. श्रीमती वीणा जोशी, ब्रह्मदत्त दुबे पंडित देवेंद्र वर्मा, संजय देवले, अविनाश महाजनी श्रीकांत कुलकर्णी, विकास विपट विशेष रूप से उपस्थित थे।
सभा का आगाज झांसी से आईं सुश्री कल्याणी श्रीवास्तव के गायन से हुआ। कल्याणी युवा गायक हैं और झांसी में ही श्री समीर भालेराव से संगीत की शिक्षा ले रहीं हैं। उन्होंने आपने गायन के लिए राग मधुवंती का चयन किया।संक्षिप्त आलाप से शुरू करके इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -” तोरे गुन गाऊं” जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल -” घुंघरवा मोरा बाजे”। कल्याणी जी ने दोनों ही बंदिशों को बड़े सलीके से गाने की कोशिश की। उनकी आवाज में मिठास है पर गायन में उन्हें चैनदारी पर अभी मेहनत करने की जरूरत है। खैर, उन्होंने मिठास भरा गायन पेश किया। उनके साथ तबले पर झांसी के केशव प्रसाद ने और हारमोनियम पर हर्षित झा ने संगत की।
अगली प्रस्तुति में झांसी के श्री समीर भालेराव का गायन हुआ। समीर जी मंझे हुए गायक हैं। उन्होंने अपने गायन की शुरुआत राग यमन से की। सुर लगाते ही राग का स्वरूप खड़ा हो गया। इस राग में उन्होंने दो परंपरागत बंदिशें गाईं। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -” मेरो मन बांध लीनो” जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे -” मोरी गगर न भरन देत”। दोनो ही बंदिशों को आपने बड़े ही मनोयोग से गाया। विलंबित बंदिश को गाते समय आपने राग का इस तरह विस्तार किया कि एक – एक सुर खिलता चला गया। फिर लय को हल्का सा बढ़ाते हुए वहलाबों से होकर तानों की प्रस्तुति में भी उन्होंने खूब कमाल दिखाया।विविधतापूर्ण तानों की अदायगी लुभाने वाली थी। उनकी आवाज दमदार है, साथ ही आप खुले गले से गाते हुए तीनों सप्तकों में सहजता से गाते हैं। बहरहाल, आपके साथ तबले पर केशव प्रसाद एवम हारमोनियम पर हर्षित झा ने संगत की।
तीसरी प्रस्तुति में चंडीगढ़ से तशरीफ लाए डॉ महेंद्र प्रसाद शर्मा का एकल तबला वादन हुआ। उन्होंने तीनताल में अपना वादन पेश किया। उन्होंने उठान से शुरू करके पेशकार कुछ कायदे और पलटे पेश किए। शर्मा जी के वादन की खासियत ये है कि उसमें बनारस अंग की मिठास तो है ही ,चैन भी है। उनके वादन में नए नवेले तबला वादकों जैसा शोर नहीं है बोलों की स्पष्टता और उनका साफ साफ निकास वादन को खास बनाता है। उनके साथ हारमोनियम पर पंडित देवेंद्र वर्मा ने बड़े ही सधे हुए अंदाज में लहरा दिया।
सभा का समापन दिल्ली से पधारे श्री राजेश सिंह नेगी के गायन से हुआ। पिछले 20 सालों से प्रस्तुतियां देते आ रहे नेगी जी भी मंझे हुए गायक हैं। आपने राग बागेश्री से गायन की शुरुआत की। इस राग में आपने तीन बंदिशें पेश कीं। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे – ” अब तो सुध ले मोरी” जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे -” तन मन की सुध री विसर गई” एक ताल में अति द्रुत बंदिश के बोल थे -” अबकी बेर पार करो” – इन तीनों ही बंदिशों को आपने बड़े सलीके से पेश किया। रागदारी की बारीकियों निर्वहन करते हुए आपने सिलसिलेवार राग का विस्तार किया। फिर तानों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। राग श्री कल्याण से गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने पंडित कुमार गंधर्व रचित राग श्री कल्याण में दो बंदिशें पेश की। तीन ताल में निबद्ध बंदिश थी -” देखो री उत फूलन लगी” और इसके बाद तीन ताल में ही दिनकर कायंकिनी की तरानानुमा रचना पेश की। गायन का समापन आपने कबीर के भजन से किया। आपके साथ तबले पर डॉ राहुल स्वर्णकार और हारमोनियम पर पंडित देवेंद्र वर्मा ने संगत की।
पंडित देवेंद्र वर्मा पंडित महीपत राव सम्मान से विभूषित
कार्यक्रम में दिल्ली से पधारे वरिष्ठ संगीत साधक पंडित देवेंद्र वर्मा को पंडित महीपत राव महाजनी सम्मान से विभूषित किया गया। रागायन के अध्यक्ष एवम सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की शाला के महंत स्वामी रामसेवक दास जी महाराज एवम रागायन के उपाध्यक्ष अनंत महाजनी ने उन्हें शॉल श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। इस अवसर पर पंडित महेशदात पांडे ब्रह्मदत्त दुबे, डॉ वीणा जोशी सहित बड़ी संख्या में संगीत के गुणीजन उपस्थित थे।