Top Newsदेशमध्य प्रदेश

सत्य बोलना सत्य नहीं है, इस संसार में जीना सत्य है- मुनिश्री

04 सितम्बर को मुनिश्री के सानिध्य भगवान पुष्पदंत के मोक्षकल्याणक पर लड्डू चढ़ेगा

ग्वालियर-: सत्य का आधार ही संयम है। झूठ बोलने वाला भी सत्य को झूठला नहीं सकता। जो वस्तु का स्वभाव है वही सत्य है। जिस तरह पानी का स्वभाव शीतलता, अग्नि का स्वभाव उष्णता होता है यदि पानी को आंच पर रखा जाए तो वह उष्ण होगा लेकिन जैसे ही उसको कुछ समय प्रकृतिस्य कर दो वह अपने शीतल जीव का स्वभाव में आ जाएगा। ऐसे ही प्रत्येक जीव का स्वभाग क्षमा, मृदुता, ऋतुता, सरलता है और यही सत्य है। सत्य बोलना सत्य नहीं है, इस संसार में जीना सत्य है। बिरले लोग हैं जो सत्य पर चलते है। सत्य बोलना आसान है पर सत्य पर जीना कठिन है। उक्त उद्गार पर्युषण पर्व के चौथे दिन शनिवार को उत्तम सत्य धर्म पर श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ने साधनामय बर्षयोग समिति, सहयोगी संस्था पुलक मंच परिवार के तत्वावधान में माधवगंज स्थित चतुर्मास स्थल अशियाना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनिश्री ने कहा कि लोगों की धारणा बनी हुई है कि वे यदि सत्य का पालन करेंगे तो उनका सारा काम बिगड़ जाएगा। व्यापार में, नौकरी में, समाज में सभी जगह बहुत कठिनाई आ जाएगी। यह मन की दुर्बलता है। झूठा व्यक्ति ही सदैव भयभीत रहता है, न मालूम कब उसके झूठ का भेद खुल जाए। सत्य के बिना अभय नहीं होता है। सत्यनिष्ठ निर्भीक और निर्भय होता है। सत्य की सदैव विजय होता है। उन्होंने कहा कि जीवन का शाश्वत सुख प्राप्त करना है, तो मन, वचन, कार्य से सत्य आचरण को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने की जरूरत है। धर्मसभा का शुभारंभ सुरेश चंद ज्योतिषाचार्य हुकुमचंद जैन ममता जैन परिवार ने मुनिश्री के पादप्रक्षालन किए।

इंद्रो ने किया जिनेंद्र भगवान का अभिषेक, संगीतमय पूजन कर उतारी आरती

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विनय सागर महाराज के सानिध्य व पंडित ज्योतिषाचार्य हुकुमचंद जैन के मार्ग दर्शन में इंद्रो ने मंगल कलशों से भगवान जिनेंद्र का जयकारों के साथ जलअभिषेक किया। मुनिश्री ने अपने मुखबिंद से भगवान की शांतिधारा विनोद विपिन जैन, विमल जैन, कपूरचंद जैन परिवार ने की। भक्तामर विधान में इंद्र इंद्राणियो ने पीले वस्त्र धारण कर दसलक्षण पूजा, उत्तम सत्य की पूजन मधुर संगीतध्वनि पर भक्ति नृत्य करते हुए भगवान जिनेंद्र के समक्ष मढने पर महाअर्ध्य समर्पित किए।

भक्तामर काव्य की रचना पर आधारित नाटक का मंचन

चातुर्मास स्थल पर पर्यूषण महा पर्व के दौरान रात्रि में भक्तामर प्रभावन महिला मंडल की ओर से महिलाओ, बालक- बालिकाओं ने ड्रेस कोर्ट में सज्जाधज कर नाटिकमंचन किया। नाटिक में बताया कि भक्तामर काव्य की रचना मानतुंगाचार्य ने कि। आचार्य मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा हर श्लोक की रचना ताला टूटता गया। इस तरह 48 शलोको पर 48 ताले टूट गए। मानतुंग आचार्य 7वी शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए है। मंत्र शक्ति में आस्था रखने वालो के लिए यह एक दिव्य स्तोत्र है। इस पर आधारित एक नाटक की शानदार प्रस्तुत दी तो सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Close