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शरीर के नहीं आत्मा के श्रृंगार से कल्याण होगा:विज्ञमती
पर्युषण के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म मनाया

ग्वालियर, 3 सितंबर। जीवन में उत्तम शौच धर्म उतर जाना न कठिन है, न आसान। इस धर्म की पवित्रता स्वयं के आत्मभावों की शुद्धता पर निर्भर होती है। मिथ्यात्व दोषों से मलिन आत्मा गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद भी भाव विशुद्धि को प्राप्त नहीं कर सकती। शरीर का श्रृंगार करने से मन का श्रृंगार नहीं होगा। इसलिए अपने कल्याण के लिए शरीर का नहीं आत्मा का श्रृंगार करो। यह उदगार पट्ट गणिनी आर्यिकाश्री विज्ञमती माताजी ने शनिवार को चम्पाबाग बगीची में पर्युषण पर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए।
माताजी ने कहा कि शौच धर्म पवित्रता का दिन है, इसलिए अपनी आत्मा को पवित्र बनाओ। चिता जलने से पहले चिंतन का खाता खोल लो। पर्युषण पर्व अपने पर्वों (कर्मों) को काटने के लिए आते हैं। ये कर्म तभी कटेंगे, जब हमारे मन से अपने शरीर को सजाने के भाव खत्म नहीं होगा। माताजी ने कहा कि हमारे अंदर त्याग की भावना नहीं आए, अहिंसा का भाव नहीं आए तो व्रत, उपवास करना व्यर्थ है। पाप भी कर रहे हो, उपवास भी कर रहे हो तो कल्याण कैसे होगा। इस शरीर को सजाने की बजाए शुचिता को अपना लोगे तो जीवन संवर जाएगा। उत्तम शौच धर्म लोभ का त्याग करने का संदेश देता है।
लोभ के त्याग से ही विचारों में शुद्धता आती है:विकर्षमती
इस अवसर पर आर्यिकाश्री विकर्षमती माताजी ने कहा कि लोभ का त्याग करना काफ़ी कठिन होता है। जब तक लोभ का त्याग नहीं होगा, शौच धर्म का पालन नहीं हो सकता। व्यक्ति को जैसे-जैसे लाभ होता जाता है, उसका लोभ बढ़ता जाता है। हम आवश्यकता में जीयें तो जरूरत की पूर्ति हो जाती है, लेकिन हम आकांक्षा में जीते हैं, जो अनंत होती है। उनकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती। हमारा शरीर आवश्यकता में और मन आकांक्षा में जीता है। मन आकांक्षा का पुलिंदा है। वह यहां-वहां भटकता है। हमें चैन से नहीं जीने देता। मानव जीवन की प्रथम सीढ़ी मोक्ष है, लेकिन मन को इधर-उधर भटकाने से मंजिल तक नहीं पहुंच पाते। संसारी प्राणी विषय भोगों में लिप्त होकर जीवन को यूं ही गंवा देता है। माताजी ने कहा कि जब लोभ बढ़ता जाता है तो व्यक्ति प्रभु से दूर हो जाता है। लोभ पाप का बाप होता है और तृष्णा मां। जब तक हम आकांक्षाओं में जिएंगे, शांति प्राप्त नहीं कर सकते।
जैन अंताक्षरी में विजेताओं को किया पुरुस्कृत
जैन समाज के प्रवक्ता ललित जैन ने बताया कि आज सुबह राजकुमार जैन ने भगवान की शांतिधारा की। सौधर्म इंद्र राजेश जैन, पिंकी जैन एवं राजकुमार जैन परिवार ने दीप प्रज्वलित किया। रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत आज जैन मिलन महिला नेमिनाथ दानाओली द्वारा जैन भजन अंताक्षरी का आयोजन किया गया जिसमें विजेताओं को चातुर्मास कमेटी के संयोजक पुरुषोत्तम जैन, विनय कासलीवाल, पंकज छावड़ा, जैन मिलन के अध्यक्ष मनोज सेठी, विनोद जैन, अजीत वरैया ने पुरुस्कृत किया!