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अहंकार को त्याग कर विनम्रता धारण करें: विज्ञमती माताजी
पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर प्रवचन हुए

ग्वालियर, 1 सितंबर। कोमलता के भाव ही मार्दव है। मन की सरलता, विनय, आदर करने के भाव ही मार्दव धर्म है। उत्तम मार्दव धर्म से अहंकार का मर्दन होता है और व्यक्ति अपनी सच्ची विनयशीलता को प्रकट करना है। जब तक हम अपने ही बारे में सोचते हैं तो अहम भाव हमारे साथ रहता है। मार्दव धर्म हमारे अहम भाव का विसर्जन कर ‘हम’ भाव की ओर ले जाता है। इसलिए विनम्रता को धारण कर अहंकार का त्याग करें। यह उदगार पट्ट गणनी आर्यिकाश्री विज्ञमती माताजी ने गुरुवार को पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर प्रवचन करते हुए चम्पाबाग बगीची में व्यक्त किए।
माताजी ने बताया कि मन में मलिनता रखना साधु का स्वभाव नहीं होता। ये गृहस्थ का भी स्वभाव नहीं होता। सभी विधाओं में पारंगत व्यक्ति भी अहंकार करता है तो उसकी विधाएं निष्फल हो जाती हैं। इसलिए अहंकार नहीं करना चाहिए। लघुता से प्रभु की पहचान और प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। माताजी ने कहा कि बड़ा बनना है तो स्वयं अपने अंदर के बुझे दीपक को जलाओ। उत्तम मार्दव धर्म दूसरे की खोज से निकलने की बजाए स्वयं के अंदर विनम्रता, मृदुता लाता है।
जीवन में मृदुता अपनाएं: विजितमति माताजी
इस अवसर पर आर्यिकाश्री विजितमती माताजी ने कहा कि अपने अंदर विनम्रता, मृदुता, विनयशीलता लाना मार्दव धर्म का उपदेश है। अपने भीतर मौजूद अहंकार को स्वाध्याय, पूजा, अर्चना, आराधना के माध्यम से छोड़ सकते हैं। इंसान अहंकार में डूब कर जीवन को तहस-नहस कर लेता है। जैसे-जैसे कषाय मंद होने लगती है। कर्मों, कषायों का नाश होने पर उसमें शक्ति आने लगती है। वह अंततः स्वर्ग भी जा सकता है। माताजी ने बताया कि हमारी जैसी भावना होती है, वैसा ही हमारा शरीर हो जाता है। हम मार्दव धर्म को अपनाकर अपने अंदर विनम्रता लाएं और देव, शास्त्र, गुरु का सम्मान करें।
रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए
जैन समाज के प्रवक्ता ललित जैन ने बताया कि सुबह भगवान का अभिषेक आज के सौधर्म इंद्र विकास जैन, सोनल जैन किया! राजेश जैन, विकास जैन ने भगवान की शांतिधारा की! तद्पश्चात पं सुनील शास्त्री के मार्गदर्शन में दसलक्षण महामंडल विधान हुआ। रात्रि में धार्मिक हाऊजी, मंगलाचरण नृत्य, सरप्राइज पहेली आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए।