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कृषि विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान पर राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी शुरू

कृषि वैज्ञानिक औद्योगिक उपयोग के लिए जरूरी गुणों से युक्त गेहूँ की किस्म खोजें – उप महानिदेशक डॉ. शर्मा

ग्वालियर 29 अगस्त 2022/ भविष्य की चुनौतियों एवं वातावरण की कठिनाईयों को ध्यान में रखकर अधिक गर्मी व सूखा प्रतिरोधी एवं रोग प्रतिरोधक किस्में ईजाद करने की जरूरत है। साथ ही बायोफोर्टीफाइड पौष्टिकता से युक्त किस्मों पर काम करने की भी आवश्यकता है। यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक एवं फसल विज्ञानी डॉ. तिलकराज शर्मा ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के दत्तोपंत ठेंगड़ी सभागार में देश भर से आए कृषि वैज्ञानिकों की वार्षिक संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में कही। उन्होंने कहा हमें औद्योगिक उपयोग के लिए आवश्यक गुणों वाली गेहूं की किस्म भी तैयार करने की जरूरत है। इस वार्षिक संगोष्ठी में देश की सबसे महत्वपूर्ण फसलों गेहूँ और जौ पर अनुसंधान कर रहे देश भर से आए कृषि वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. शर्मा ने कहा कि घटते जल संसाधनों का समुचित उपयोग और गेहूं के पोषण मूल्य वृद्धि हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक सहयोग पर अधिक ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों और किसानों के सम्मिलित प्रयासों से आज हम गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में न केवल आत्मनिर्भर हैं वरन विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक भी हैं। विगत एक दशक में हमारे गेहूं उत्पादन में 17 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के सहयोग से राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित इस तीन दिवसीय गोष्ठी को संबोधित करते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्था सिमिट, मेक्सिको के महानिदेशक डॉ. ब्रेम गोर्वस्ट ने कहा कि वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और किसानों का योगदान महत्वपूर्ण है, जो न केवल भारत वरन विश्व को खाद्यान्न आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस बैठक से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक सहयोग से गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में टिकाऊ उत्पादकता, ग्रीन गैस उत्सर्जन, गुणवत्ता युक्त बीज सिक्योरिटी जैसे विषयों पर अनुसंधान की दिशा तय होगी। गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के निदेशक डॉ. जी.पी. सिंह ने कहा कि गेहूं उत्पादन में मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका है। अब इसने देश के कुल उत्पादन का 21 प्रतिशत भाग अपने यहां उपजाते हुए हरियाणा, पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। इसमें मध्य प्रदेश के किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक बीज डॉ डी. के. यादव ने कहा कि विगत 8 वर्षों में गेहूं और जौ की 146 किस्में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई, जिसमें कुपोषण से मुक्ति के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी के आह्वान के अनुसार बायोफोर्टीफाइड किस्में प्रमुख है। भविष्य की दृष्टि से हमें गेहूं में हाइब्रिड सीड पर काम करना है, जिससे देश का और अधिक फायदा हो सकता है। उप महानिदेशक डॉ. आर. के. सिंह ने कहा कि वैज्ञानिकों और किसानों के सहयोग से हम न केवल स्वावलंबी हुए हैं वरन विश्व को गेहूं का निर्यात भी कर रहे हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है।
प्रारंभ में विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति डॉक्टर दीपक हरि रानडे ने बताया कि विश्वविद्यालय के अनुसंधान कार्यकर्ताओं द्वारा गेहूं की अनेक अच्छी किस्में विकसित की गई है। गेहूं में जल प्रबंधन तथा प्राकृतिक परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने वाली किस्मों पर भी अच्छा काम हो रहा है। संचालक अनुसंधान डॉ संजय कुमार शर्मा ने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय की ओर से देशभर से पधारे हुए वैज्ञानिकों का स्वागत किया और आशा व्यक्त की कि गोष्ठी से उपयोगी निष्कर्ष सामने आएंगे।
कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनेक प्रकाशनों का लोकार्पण किया गया वहीं गेहूं एवं जौ अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले वैज्ञानिकों का भी सम्मान किया गया। देश भर से आए 10 प्रगतिशील किसानों के द्वारा वैज्ञानिकों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन डॉ ज्ञानेंद्र सिंह द्वारा तथा संचालन डॉ. अनुज कुमार द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र के बाद कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान कार्यो पर चर्चा की।
कार्यक्रम में पूर्व कुलपति डॉ व्ही. एस. तोमर, प्रमंडल सदस्य एवं विधायक श्री लाखन सिंह, श्री योगेंद्र सक्सेना, विश्वविद्यालय निदेशक शिक्षण डॉ. एस. पी. एस. तोमर, कुलसचिव अनिल सक्सेना, संचालक विस्तार सेवायें डॉ. वाय. पी. सिंह सहित बड़ी संख्या में देश भर के वैज्ञानिक एवं विद्यार्थी गण उपस्थित थे।

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