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UP पुलिस की लापरवाही, बेगुनाह दंपति को जेल में बिताने पड़े 5 साल, अब रिहा हुए तो खुद के दो बच्चे अनाथालय से मिले गायब

लोगों को लगता है कि पुलिस प्रशासन जनता की सेवा और सुरक्षा के लिए है किन्तु यह भ्रम उस समय टूट जाता है जब पुलिस बेगुनाहों को बिना किसी जांच-पड़ताल के जेल में डाल देती है। कुछ ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश से सामने आया है जहां आगरा पुलिस की बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है। उत्तर प्रदेश के जिला आगरा की तहसील बाह के इस मामले में सनसनी फैला दी है।

आगरा के बाह के जरार गांव में एक सितंबर 2015 को छह वर्षीय रंजीत की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में रंजीत के पिता योगेंद्र ने पास में ही रहने वाले नरेंद्र और उनकी पत्नी नजमा के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। उत्तर प्रदेश की स्थानीय पुलिस ने 40 वर्षीय नरेंद्र सिंह और उसकी 30 वर्षीय पत्नी नजमा को 5 साल के लड़के की हत्या के मामले में 2015 में आगरा के बाह से गिरफ्तार किया था।

अब निर्दोष पति-पत्नी को रिहा करने के अपने आदेश में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को जमकर डांट लगाई। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि निर्दोष होने के बाद भी दंपत्ती को 5 साल जेल में बिताने पड़े और मुख्य आरोपी अभी भी फरार हैं। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कोर्ट ने आगरा जिला एसएसपी को जांच अधिकारी के खिलाफ लापरवाही बरतने पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा, ‘तत्कालीन सब-इंस्पेक्टर ने स्वीकार किया था कि उन्होंने यह भी पता लगाने की कोशिश नहीं की कि एफआईआर किसके खिलाफ दर्ज की गई थी। अब मामले में फिर से जांच करने की सिफारिश की गई है।
हालांकि कोर्ट ने इस मामले में तत्कालीन इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मगर, वह भी अब रिटायर हो चुके हैं।

बता दें कि जेल से बेगुनाह साबित होकर निकले नरेंद्र सिंह पेशे से शिक्षक थे। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों की क्या गलती थी। बच्चों को अनाथों की तरह रहना पड़ा। जब पुलिस हमें गिरफ्तार कर ले गई थी तब वह बहुत छोटे थे। नजमा ने बच्चों को पता लगाने के लिए एसएसपी को पत्र लिखा है। उल्लेखनीय है कि जहां दंपत्ति को निर्दोष साबित होने की खुशी है, वहीं अपने बच्चों को ढूंढने के दौरान अपने आंसू नहीं रोक पा रहे हैं।

जेल से निकलने के बाद ये दंपत्ति अपने बच्चों से मिलना चाहते थें लेकिन अपने बेटे अजीत और बेटी अंजू का पता नहीं लगा पा रहे हैं। हालांकि पुलिस द्वारा उनके बच्चों का पता लगाने के प्रयास की बात कही जा रही है। जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2019 में दंपत्ती के दादा ने खराब वित्तीय हालत का हवाला देते हुए दोनों बच्चों की देखभाल करने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद 24 अक्टूबर, 2019 को उन्हें आगरा बाल संरक्षण गृह में स्थानांतरित कर दिया गया। आगरा सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष गोपाल शर्मा ने कहा, “दोनों बच्चे पिछले अगस्त से अलग-अलग रह रहे थे, क्योंकि 10 साल तक के बच्चों को बाल संरक्षण घरों में रखने की अनुमति दी जाती है। 10 साल के बाद दोनों को अलग-अलग जगह भेज दिया गया। इस बीच, दंपत्ति के वकील वंशो बाबू ने गोपाल शर्मा के दावों पर एतराज जताते हुए कहा कि बच्चों को उनकी कम उम्र के बावजूद गलत तरीके से बाल संरक्षण गृह से निकाल दिया गया है। उन्होंने कहा कि अब उन बच्चों को जल्द से जल्द अपने माता पिता के साथ रहने की अनुमति दी जाए।

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