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दिल्ली के कोचिंग संस्थानों और नॉर्थ कैंपस के आसपास रहने वाले युवाओं के अनुभवों को समेटे हुए है ‘B-15 B फोर्थ फ्लोर’ उपन्यास

वरिष्ठ साहित्यकार संजीव कुमार गंगवार की 23वीं पुस्तक ‘B-15 B फोर्थ फ्लोर (कहानी क्रिश्चियन कॉलोनी की)’ एक उपन्यास के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। कुल 296 पृष्ठों की पुस्तक में लेखक ने 51 चेप्टरों को खूबसूरती से संकलित करने का काम किया है। प्रस्तुत उपन्यास में देश की राजधानी नई दिल्ली में प्रमुख शैक्षणिक क्षेत्र जैसे क्रिश्चियन कॉलोनी , मुखर्जी नगर, नेहरू विहार, गांधी विहार, किंग्सवे कैंप, दिल्ली विश्वविद्यालय के नामचीन कॉलेज जैसे कि हिन्दू कॉलेज, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, किरोड़ीमल कॉलेज, दौलतराम कॉलेज, मिरांडा हाउस, रामजस कॉलेज आदि को पृष्ठभूमि के रूप में उपयोग किया है। इन शैक्षणिक क्षेत्रों एवं नामचीन कॉलेजों के संदर्भ में घटित सच्ची घटनाओं का साक्षी होने के अनुभवों को लेखक ने एक उपन्यास का रूप देते हुए पाठकों के समक्ष युवा भारत की अलग ही दुनिया पेश की है। कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थी, नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे अभ्यर्थी और नौकरशाही में नेतृत्व करने की इच्छा और सपना लिए हुए युवा जो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी में दिन-रात की समय-सीमा भूलकर कैसे आर्थिक, सामाजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक समस्याओं का सामना करते हैं तथा कौन-से समाधान निकलते हैं। इनकी यही समस्याएं और समाधान कैसे राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय होने लगती है, यही दिलचस्प यात्रा है।
B-15 B फोर्थ फ्लोर (कहानी क्रिश्चियन कॉलोनी की) उपन्यास में लेखक की भाषा और शब्दों पर मजबूत पकड़ पाठक को एक फिल्म थियेटर के दर्शक के तौर पर रुपांतरित करने में सफल रहता है। पूरी पुस्तक का वातावरण बिल्कुल वास्तविक लगता है। उपन्यास में खींचे गए चित्र, कमरों और क्रिश्चियन कॉलोनी को लेकर बारीकी से किया गया विश्लेषण, किरदारों की भूमिका और उनके जीवन की मजेदार कहानियां पाठक के सामने चलचित्र की भांति चलने लगती है। संजीव कुमार गंगवार की कलम साधुवाद की पात्र है कि शब्दों और किरदारों पर मजबूत पकड़ के चलते पाठक स्वंय को इन किरदारों में ढूंढने लगता है। प्रस्तुत उपन्यास में लेखक की व्यंग्यात्मक शैली का परिचय भी देखने को मिलता है। जो इस प्रकार है, “इस मंदिर के सभी भगवान प्राय: कन्फ्यूज रहते हैं। कारण यह कि उन्हें रोज ही बड़ी संख्या में आई.ए.एस और पी.सी.एस आदि की अर्जियां प्राप्त होती रहती हैं (पृष्ठ संख्या 18)। “कॉलोनी भी हिन्दुस्तान हो चली है। जो समारोह करता है, बैठकें करता है, सेमीनार करता है, बड़ी-बड़ी चर्चाएं करता है। यहां तक कि आयोग बैठाता है। लेकिन जो काम हिन्दुस्तान नहीं करता, वो है किसी भी समस्या का हल (पृष्ठ संख्या 83)। “इस बाजार में भी जरुरत की चीजें नहीं बनतीं बल्कि चीजों की कृत्रिम जरूरत पैदा की जाती है (पृष्ठ संख्या 165)। “जिस व्यक्ति को समय से सफलता मिल जाती है, उसकी नजर में भाग्य कुछ नहीं होता। जिस व्यक्ति को सफलता काफी संघर्ष से मिलती है, उसके लिए भाग्य की सत्ता हो भी सकती है और नहीं भी (पृष्ठ संख्या 295)। लेखक ने उपन्यास में जिक्र किया है कि जब कठिन परिश्रम करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती है तो कैसे देश का युवा अंधविश्वास के कुंए में छलांग लगाने के लिए बेचैन होने लगता है। इन युवाओं को ऐसा करने के लिए मजबूर करती है हमारे देश की शासन-प्रशासन की बिगड़ी हुई व्यवस्था, असंवेदनशील समाज और पड़ोसियों के बच्चों को देख अपने बच्चों पर अनावश्यक दबाव बनाने वाले अभिभावक और रिश्तेदार।
कोरोनाकाल में जब देशव्यापी लॉकडाउन लगा हुआ था, तब वरिष्ठ लेखक संजीव कुमार गंगवार अपनी 23वीं पुस्तक B-15 B फोर्थ फ्लोर (कहानी क्रिश्चियन कॉलोनी की) को किताब का रूप देने पर काम कर रहे थे। जैसा कि लेखक ने उपन्यास में जिक्र किया है कि लॉकडाउन होने के कारण घर से बाहर निकलना उपयुक्त नहीं था, ऐसे में उपन्यास को अंतिम रूप देने में लेखक के तीन प्रमुख सहयोगी रहे। 50 घंटे से अधिक समय तक फोन पर चर्चा करते हुए प्रूफ रीडिंग, एडिटिंग करने वाले श्री पवन वर्मा जी, उपन्यास का आवरण पृष्ठ तैयार करने एवं उपन्यास में प्रत्येक चेप्टर से पहले खूबसूरत और रोचक चित्र बनाने वाली चित्रकार और संजीव कुमार गंगवार की मदर इन लॉ श्रीमती अलका रस्तोगी जी, लॉकडाउन के दौरान घर पर सीमित संसाधन होने की स्थिति में अपने मोबाइल फोन से इन चित्रों को स्कैन करने, रंग भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली लेखक की सिस्टर इन लॉ डॉ० अदिति रस्तोगी जी साधुवाद के तुल्य हैं।
दिसंबर 2001 से जनवरी 2013 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में स्थित क्रिश्चियन कॉलोनी में रहते हुए लेखक ने प्रतियोगी परीक्षाओं में जुटे हुए अपने बनारसी बाबू, मारू, बुच्ची बाबू, बाला जी, पुत्तन बाबू, लल्लन पाण्डेय, गोगा जी, खाटू दादा, गुलेरी बाबू इत्यादि मित्रों के साथ देश-दुनिया की घटनाएं को अपने अनुभव एवं तार्किक शक्ति के आधार पर बनने वाली कहानियों को इस उपन्यास में संकलित किया है। बाला जी उपन्यास के बेहद मजेदार और रोचक चरित्र हैं। खाटू दादा , बुच्ची बाबू , बनारसी बाबू , गोगा जी , लल्लन पाण्डेय और गुलेरी बाबू जैसे चरित्र पाठक को दिल खोलकर हंसने पर विवश कर देते हैं। साथ ही इनका संघर्ष भी बड़ा है। सबसे बड़ा संघर्ष उपन्यास के मुख्य पात्र के रूप में दिखते मारू का है।
देश के किसी भी विश्वविद्यालय और विशेष रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों, देश में प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना कर चुके युवाओं को यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए ताकि इस उपन्यास को पढ़ते हुए पाठक अपनी पढ़ाई के दौरान किए गए संघर्ष, परिवार का सहयोग, दोस्तों की जुगलबंदी और शासन-प्रशासन का रवैया, पढ़ाई के दौरान देखे गए सपने और निर्धारित लक्ष्यों पर अब फुर्सत के पलों में गहराई से विचार-विमर्श किया जा सके। अपने पुराने दिनों में यदि आप वापस जाना चाहते हैं और आज के तनाव भरे समय में खिलखिलाकर हंसना चाहते हैं तो यह उपन्यास जरुर पढें।
✍️ समीक्षा : दिनेश दिनकर
• उपन्यास- B-15 B फोर्थ फ्लोर (कहानी क्रिश्चियन कॉलोनी की)
• लेखक- संजीव कुमार गंगवार
• अंकित मूल्य- 330 रूपए
• प्रकाशन- साहित्य संचय प्रकाशन