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सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी, तीन तलाक में पति के रिश्तेदार नहीं जिम्मेदार, आरोपी पति को दे सकते हैं जमानत

तीन तलाक़ बिल को लेकर देशभर में हंगामा हुआ था किन्तु मोदी सरकार ने मुस्लिम धर्म की महिलाओं के हित को ध्यान में रखते हुए इस बिल को मंजूरी दे दी थी। अब तीन तलाक़ कानून के संदर्भ में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक देने के मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि तीन तलाक देने वाले आरोपी पति के रिश्तेदारों को आरोपी नहीं माना जा सकता क्योंकि पति ने तीन तलाक देकर अपराध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित महिला की सास को अग्रिम जमानत देते हुए उक्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि तीन तलाक मामले में अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचुड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि पति के रिश्तेदारों को तीन तलाक विरोधी कानून यानी मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में अहम व्यवस्था देते हुए तीन तलाक देने के आरोपी पति की माँ यानी पीड़ित की सास को अग्रिम जमानत दी और कहा कि जो पहली नज़र का आंकलन है उससे ये स्पष्ट है कि पीड़िता की सास है याचिकाकर्ता महिला जो तलाक देने वाले पति की मां हैं। इस एक्ट के तहत मुस्लिम पुरुष ने अपराध किया है और ऐसे में उसकी माँ को आरोपी नही ठहराया जा सकता है।

अहम मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड की बेंच ने कहा कि मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट की धारा 3 में मुस्लिम पुरुष एक बार मे तीन तलाक लेना अपराध है। धारा 4 में कहा गया है कि तीन तलाक देने के दोषी पति को तीन साल तक कैद की सजा हो सकती है। मौजूदा मामले में पीड़ित महिला के पति की माँ को आरोपी बनाया गया है। उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना और मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पति की मां को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि इस मामले में अगर जमानत पर कोई रोक नहीं है लेकिन संबंधित अदालत जमानत का आर्डर करने से पहले शिकायत करने वाली महिला को भी सुने। अग्रिम जमानत का आदेश अदालत के विवेक पर निर्भर है। बता दें कि केरल हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलने पर याची सास ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केरल के इस दम्पति के मामले में फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि तीन तलाक के आरोपी पति को अदालत अग्रिम जमानत दी जा सकती है। इससे पहले ये समझा जाता था कि अगर कोई मुस्लिम महिला या उसके रिश्तेदार किसी व्यक्ति पर तीन तलाक देने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराते हैं तो उस व्यक्ति को सीधा जेल भेजा जाएगा, उसे अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। यानी उस आरोपी को पुलिस में सरेंडर करना होगा, जेल जाना होगा और फिर अदालत महिला का पक्ष सुनने के बाद ये तय करेगा कि आरोपी पति को ज़मानत दी जाएगी या नहीं।

इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और कहा गया था कि ये कानून एकतरफा है। इसे संतुलित करने की ज़रूरत है। फिलहाल ये मामला संविधान पीठ में लंबित है। उस याचिका से अलग हटकर सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत के मामले में फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आरोपी पति अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल कर सकता है। यानी उसे बिना सरेंडर किया ज़मानत याचिका दाखिल करने का अधिकार होगा। फिर अदालत शिकायतकर्ता महिला का पक्ष सुनेगा और इसके बाद अदालत तय करेगा की पति को ज़मानत दी जाएगी या नहीं। वहीं, यह भी माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक आरोपी पति जेल जाने से बच सकता है।

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