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कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी होने की फैली अफवाह, वैक्सीन ना लगवाने को लेकर मुंबई से फतवा जारी

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस की वैक्सीन पर अभी काम चल ही रहा है कि इसको लेकर कुछ शरारती तत्वों द्वारा अफवाह फैलानी शुरू कर दी गई है। मुंबई की राजा एकेडमी ने एक फतवा जारी करते हुए कहा है कि जब तक हमारे मुफ्ती दवा की जांच न कर लें, तब तक मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे न आएं। ऑल इंडिया सुन्नी जमीयत-ए-उलेमा और रजा अकादमी ने बुधवार को मुंबई में एक बैठक में फैसला लिया कि चीन में निर्मित कोरोना वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है इसलिए वे इसका प्रयोग नहीं करेंगे। उलेमाओं की बुधवार को हुई बैठक में यह तय किया गया कि अगर वैक्सीन में सुअर के शरीर की किसी भी चीज का इस्तेमाल किया गया है तो वह इस्लाम के खिलाफ है। बताया जा रहा है कि इस्लाम में सुअर के मांस पर प्रतिबंध है।

ऑल इंडिया सुन्नी जमीयत-ए- उलेमा की बैठक की एक तस्वीर

मोदी सरकार अगले साल के पहले महीने से कोरोना वैक्सीन लगाने को लेकर बड़े स्तर पर योजना बना रही है किन्तु मुस्लिम समुदाय के लोग कोरोना वैक्सीन के हलाल या हराम होने के सवाल पर आपत्ति जताने लग गए हैं। मुंबई की रजा अकादमी के मौलाना सईद नूरी ने फतवा जारी करते हुए कहा कि पहले उनके समुदाय के मौलाना और मुफ़्ती यह जांच करेंगे कि वैक्सीन हलाल है या नहीं। मौलाना सईद नूरी के मुताबिक उन्हें यह पता चला है कि चीन ने जो वैक्सीन बनाई है। उसमें सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में जो भी वैक्सीन भारत आती है, उसे हमारे मुफ्ती और डॉक्टर अपने हिसाब से चेक करेंगे। उनकी इजाज़त मिलने के बाद ही भारत के मुस्लिम उस वैक्सीन का इस्तेमाल करें वर्ना न करें। अब देखना होगा कि कैसे दुनियाभर के मौलाना-मुफ्तियों यह जांच करेंगे कि यह दवा हलाल विधि से बनी है या हराम तरीके से।

वहीं लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने अपने समुदाय के लोगों से किसी अफवाह में आने के बजाए आराम से वैक्सीन लगवाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि जान की हिफाजत सबसे बड़ी चीज है इसलिए सभी सामान्य तरीके से वैक्सीन लगवाएं। वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से देखना गलत है।
सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि यदि यह दवा सुअर के मांस से बनी है तो क्या कुरान के तहत इसे लगवाना जायज होगा या नहीं? या फिर मुस्लिम समुदाय के लोग अन्य वैक्सीन के आने का इंतजार करेंगे।

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के शीर्ष इस्लामी निकाय ‘यूएई फतवा काउंसिल’ ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क (सुअर के मांस) के जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिये जायज करार दिया है। काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता ‘मनुष्य का जीवन बचाना है।

मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब किसी पशु से एंटीबाड़ी लेकर वैक्सीन बनाई जाती है तो उसे वेक्टर वैक्सीन कहा जाता है। लेकिन कोरोना के मामले में ऐसा कुछ भी नही है। स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भारत बायोटेक के साथ रिसर्च करने वाले शोधकर्ता डॉक्टर चन्द्रशेखर गिल्लूरकर का कहना है कि सुअर और कोरोना वैक्सीन का कोई संबंध नही है।

कोरोना की वैक्सीन को लेकर एक अफवाह पूरी दुनिया में वायरल है कि इसे बनाने में सूअर के मांस का इस्तेमाल हुआ हैं। हालांकि अब तक इसका कोई मेडिकल प्रमाण सामने नहीं आया है और न ही किसी फार्मा कंपनी या मेडिकल एक्सपर्ट ने इसकी पुष्टि की है। इसके बावजूद कुछ शरारती तत्वों ने समाज का माहौल खराब करने के उद्देश्य से मुस्लिम समुदाय में वैक्सीन को लेकर अफवाह उड़ानी शुरू कर दी है। इस बिना तथ्यों की चल रही चर्चा को लेकर केंद्र सरकार डरी हुई है कि यदि इस अफवाह ने जोर पकड़ा तो देश की एक बड़ी आबादी कोरोना का टीका लगवाने से इनकार कर सकती है। जिससे देश में कोरोना के खिलाफ जंग बेकाबू हो जाएगी और इसका नुकसान पूरे देश को भुगतना पड़ेगा।

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