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किसानों द्वारा काले झंडे दिखाने पर केंद्रीय राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया बोले-इन्हें यहीं मरना था क्या

कृषि कानूनों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर अलग-अलग बयानबाजी की जा रही है। वहीं, आंदोलनकारी किसान मीडिया में बयान दे चुके हैं कि उनके इस आंदोलन में किसी भी राजनीतिक पार्टी का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा, ना ही इस मुद्दे पर राजनीति की जानी चाहिए। इस आंदोलन के बीच अंबाला से भाजपा सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया को मंगलवार को किसानों ने काले झंडे दिखाए तो केंद्रीय राज्यमंत्री भड़क गए। इस दौरान बीजेपी सांसद कटारिया के साथ विधायक असीम गोयल भी थे।

केंद्रीय राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया और विधायक असीम गोयल मंगलवार को अंबाला शहर के जंडली में 7 करोड़ की लागत से बनने वाले अंडर ब्रिज का शिलान्यास करने पहुंचे थे। इस दौरान कुछ किसानों ने उन्हें काले झंडे दिखाए। इससे पहले अंबाला में पंजोखरा साहिब गुरुद्वारे में माथा टेक कर बाहर जा रहे गृह मंत्री अनिल विज को भी काले झंडे दिखाए गए थे। विरोध करने आए किसानों ने कहा कि कृषि कानूनों को वापस करवाकर ही वे दम लेंगे। बीजेपी सांसद कटारिया पांच साल में नजर नहीं आए और आज जब नजर आए तो किसानों ने काले झंडे से उनका स्वागत किया। किसानों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमों का भी विरोध जताया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बीजेपी सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया (फाइल फोटो)

मीडिया से बात करते हुए केंद्रीय राज्यमंत्री रतनलाल कटारिया ने किसानों के बारे में कहा कि इन्हें यहीं मरना था? यदि उन्हें काले झंडे ही दिखाने थे तो कहीं और जाकर दिखा लेते। और भी 7-8 जगह कार्यक्रम थे। कटारिया ने कहा कि हमें काले झंडे दिखाने वालों को भगवान सद्बुद्धि दे।

गुस्साए किसानों ने अपना नाम बताते हुए कहा कि हमारा नाम इंटरनेट पर सर्च कर लें, हम अंबाला के ही रहने वाले हैं और उन्हें अंबाला से ही हमारी हिस्ट्री मिल जाएगी। हम न तो खालिस्तानी हैं ना ही पाकिस्तानी। हम किसान हैं। किसानों द्वारा काले झंडे दिखाने के बाद रतनलाल कटारिया और विधायक असीम गोयल को वहां से तुरंत निकलना पड़ा।

बता दें कि किसानों के इस आंदोलन को लेकर हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने भी बड़ा बयान दिया है। जेपी दलाल ने कहा कि कुछ विदेशी ताकतों को पीएम मोदी का चेहरा पसंद नहीं है। इसलिए ये विदेशी ताकतें किसानों को आगे कर बाधा डाल रही हैं। उन्होंने कहा कि नीति निर्धारण सड़क पर नहीं, संसद में जनप्रतिनिधि करते हैं। विरोध की बजाय कृषि कानूनों के परिणाम के लिए किसान 2-3 महीने इंतजार करें। बिना परिणाम के विरोध करना जायज नहीं है।

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