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भारत के पद्मश्री ‘फॉरेस्ट मैन’ की कहानी को अब किताबों में पढ़ेंगे अमेरिकी स्कूल के बच्चे

हमारे पर्यावरण संरक्षण की सच्चाई और स्थिति से हम सब परिचित हैं। विकसित देशों के पर्यावरण संरक्षण को लेकर जो ड्रामेबाजी है उससे कोई भी अंजान नहीं रहा है। पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाते हुए जिन देशों में अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने की आग लगी हुई है, यही आग हमारे चारों ओर की हरियाली को खत्म किए जा रही है। फिर भी हमारे आसपास पर्यावरण संरक्षण को लेकर छोटे-छोटे प्रयास करते हुए लोग दिख जाते हैं। इनमें से कुछ को पहचान मिल जाती है तो कुछ पेड़-पौधों की ठंडी छांव से अपने पसीने सुखाकर अपने काम में लगे रहते हैं। भारत के पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित जादव पायेंग ने पूर्वी असम में माजुली द्वीप (अब एक जिला) में माहौलियाती (पारिस्थितिक) गिरावट से परेशान होकर कई सौ एकड़ में फैले बंजर सैंडबार में पेड़ लगाने शुरू किए और इस बंजर ज़मीन को उन्होंने अपनी सख्त मेहनत के साथ एक हरे भरे जंगल में बदल दिया। इनके इस प्रयास से ना केवल आसपास हरियाली और ठंडी हवा मिल रही है बल्कि इनके चर्चे अमेरिका तक पहुंच चुके हैं।

इसी का परिणाम है कि अब फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया कहे जाने वाले जादव पायेंग की प्रेरणादायक कहानी को एक अमेरिकी स्कूल ब्रिस्टल कनेक्टिकट के ग्रीन हिल्स स्कूल की कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।शनिवार को असम के चीफ मिनिस्टर सर्बानंद सोनोवाल ने ग्रीन मिशन के तहत उनके अनुकरणीय और अथक योगदान को स्वीकार करते हुए ट्विटर पर जादव पायेंग को बधाई दी।

 

बता दें कि ग्रीन हिल्स स्कूल में स्टूडेंट्स जादव पायेंग के बारे में उनके पारिस्थितिकी (Ecology) को एक पाठ के तौर में पढ़ रहे हैं। इसकी अहम वजह यह है कि देश की भावी पीढ़ियों को इस तरह के काम के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना है। स्कूल की एक टीचर नवमी शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि अगर वह सही दिशा और दृढ़ संकल्प है तो यह अकेला शख्स दुनिया में एक बड़ा सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

जानकारी के मुताबिक, पायेंग ने अपनी 40 साल से भी ज्यादा की ज़िंदगी इस जंगल की देखभाल में लगा दी है। 550 एकड़ में फैला यह जंगल माजुली के बंजर सैंडबार के पास स्थित है। जो जोरहाट शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। साल 1969 में इलाके में भयानक बाढ़ के बाद एक बड़े सूखे के की वजह से यहां सैकड़ों सांप मर गए थे। उस वक्त वैज्ञानिकों ने भी कहा था कि कुछ सालों अंदर यह द्वीप नष्ट हो जाएगा। जिससे परेशान होकर जादव ने यह कदम उठाया था, उस वक्त पायेंग महज़ 16 बरस के थे। बताया जाता है कि जादव आज भी अपने दिन की शुरुआत सुबह 3 बजे के आस-पास करते हैं और अपने जंगल की देखभाल के लिए 5 बजे माजुली पहुंच जाते हैं। जहां वो नए पौधे लगाने के लिए बीज इकट्ठा करते हैं। जादव के लिए, उनका जंगल ही उनका परिवार है। जादव माजुली में 5,000 एकड़ में जंगल उगाने की योजना बनाई है।

पर्यावरण संरक्षण में कड़ी मेहनत और सुखद परिणाम को देखते हुए साल 2015 में भारत सरकार ने जादव पायेंग को पद्म श्री से सम्मानित किया था। इसके अलावा जादव पायेंग को देश की प्रसिद्ध “जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी” ने साल 2012 में सम्मानित करते हुए “फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया” के उपनाम से भी नवाजा था। इतना ही नहीं देश के साथ साथ विदेश में भी जादव पायेंग को सम्मान मिल चुका है। साल 2015 में ही जादव को फ्रांस में आयोजित हुई “सातवीं ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट” की बैठक के दौरान भी सम्मानित किया गया था।

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