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AIIMS में ओपीडी ऑनलाइन पंजीकरण के 10 रुपए के भुगतान के बदले हो सकता है आपका अकाउंट खाली, रहें सावधान!

ऑनलाइन खरीदारी में बैंकिंग ठगी के मामले सामने आते रहते हैं। किंतु अब ठगों ने मेडिकल लाइन में भी दखलंदाजी करनी शुरू कर दी है। बता दें कि अगर आप देश की राजधानी नई दिल्ली के एम्स हस्पताल में डॉक्टर से इलाज करवाना चाहते हैं और इसके लिए ऑनलाइन एप्वाइंटमेंट की प्रक्रिया अपनाते हैं तो आपको सावधान रहने की जरूरत है। जानकारी के मुताबिक, एम्स हस्पताल के ऑनलाइन ओपीडी पंजीकरण के नाम पर ठग सक्रिय हो चुके हैं, जो जरा सी असावधानी बरतने पर आपके बैंक एकाउंट को खाली कर रहे हैं।

इस ऑनलाइन पंजीकरण ठगी मामले में डीसीपी साउथ अतुल कुमार ठाकुर ने इस तरह की किसी भी शिकायत मिलने से इंकार करते हुए कहा कि अगर शिकायत मिलती है तो आगे की कार्रवाई की जाएगी। संबंधित मामले में एम्स प्रशासन ने भी किसी तरह की जानकारी होने से इंकार किया है। एम्स का कहना है कि वह इसकी जानकारी लेंगे तभी आगे कुछ कह सकते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

जानकारी के मुताबिक, एम्स हस्पताल के नाम पर ठगों ने विश्वनीयता बनाने के लिए हेल्पलाइन नंबर 180041202879 और 18002084519 बनाया हुआ है। सीधे एम्स की हेल्पलाइन नंबर तक पहुंचने की जरूरत में अक्सर लोग गूगल सर्च का सहारा लेते हैं और एम्स की हेल्पलाइन की जगह उन्हें ये दोनों फर्जी हेल्पलाइन नंबर मिलते हैं। जरूरतमंद मरीज से पहले ठग एम्स के उस विभाग की जानकारी लेते हैं, जिसमें उन्हें चिकित्सकीय परामर्श चाहिए। सभी जरूरी जानकारियां लेने के बाद वे मरीज को ओपीडी शुल्क 10 रुपए का ऑनलाइन भुगतान करने के लिए कहते हैं।

इस ऑनलाइन ठगी के जाल में जरूरतमंद मरीजों और उनके परिजनों को फंसाने के लिए ठग भुगतान के लिए मरीज को गूगल प्ले स्टोर से ‘ऐनीडेस्क ऐप डाउनलोड’ करने के लिए कहते हैं। बता दें कि यह स्क्रीन शेयरिंग ऐप है। जिसकी मदद से फर्जीवाड़ा करने वाले ठग बेरोकटोक मरीज के मोबाइल से कनेक्ट होकर उसकी सभी गतिविधियों पर नजर बनाए रखते हैं। इसके बाद मरीज के पास मैसेज के माध्यम से 9 डिजिट का एक नंबर भेजा जाता है। जिसे एक्सेप्ट करने के लिए कहा जाता है। इस नंबर को एक्सेप्ट करने के बाद ही ऐनीडेस्क ऐप मरीज के मोबाइल में सक्रिय हो जाता है।

बता दें कि इसके बाद ठग मरीज से मोबाइल वॉलेट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मांगते हैं और फिर मोबाइल स्क्रीन पर एक मैसेज भेजा जाता है, जिसके माध्यम से 10 रुपए भुगतान करने के लिए बोला जाता है। इसी बीच बड़ी ही चालाकी से ठग ऐनीडेस्क एप की मदद से 10 रुपए की जगह मनचाहा रकम लोड कर देते हैं। अगर मरीज रकम को न देखे तो उसके मोबाइल वॉलेट से लाखों रुपए का भुगतान हो सकता है। ध्यान देने की बात यह है कि ठग जिसे पंजीकरण नंबर बताते हैं, दरअसल वह भुगतान की रकम होती है।

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