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हरियाणा उर्दू अकादमी में 15 लाख रुपए का फर्जीवाड़ा, पूर्व निदेशक पर विजिलेंस ने दर्ज की एफआईआर

समाज में अपराध बढ़ने पर साहित्यकारों द्वारा समाज को नई दिशा दी जाने लगती है। विभिन्न विधाओं की रचनाओं के जरिए साहित्यकार अपराध को लेकर आलोचना, व्यंग्यात्मक टिप्पणी, सुझाव देने लगते हैं। किंतु अब हरियाणा की साहित्य अकादमी में ही 15 लाख रुपए के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है।
हरियाणा उर्दू अकादमी में फर्जीवाड़े का यह सारा खेल लेखकों के अतिथि सत्कार के नाम पर खाने-पीने का खर्चा दिखाने के साथ यात्रा भत्ता, मेडिकल बिलों में किया गया है। खर्चे के जो चेक बनाए गए हैं, वे सेवादार व चालकों के नाम से जारी किए हुए हैं और पैसा तत्कालीन निदेशक की जेब में जाता रहा।
हरियाणा उर्दू अकादमी में 15 लाख रुपए के हुए इस घोटाले की जांच स्टेट विजिलेंस ब्यूरो के डीएसपी शरीफ सिंह को सौंपी गई है। जांच रिपोर्ट के अनुसार एक-एक दिन में लेखकों के खाने-पीने के 3-3 बिल बनाए गए हैं। सरकारी गाड़ी का साल में दो-दो बार बीमा कराने के नाम पर भी पैसा निकाले जाने की जानकारी मिली है। यात्रा भत्ता बिना किसी की अनुमति के निजी खाते में जमा कर लिया गया है। बताया जा रहा है कि प्राथमिक जांच में ही लाखों रुपए की हेराफेरी सामने आने के बाद विजिलेंस ब्यूरो ने तत्कालीन निदेशक डॉ. नरेंद्र कुमार पर एफआईआर दर्ज कर ली है। यह जांच 2018 में हुई गड़बड़ी की है। अब विजिलेंस के डीएसपी ओमप्रकाश इस मामले की गहराई से जांच करेंगे। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के लेखा अधिकारी द्वारा किए गए ऑडिट में खुलासा हुआ कि 2018 में अकादमी में 15,07,872 रु. की गड़बड़ी की गई है।
हरियाणा उर्दू अकादमी के तत्कालीन निदेशक डॉ० नरेंद्र कुमार, जिनपर अकादमी के 15 लाख रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा है
शुरुआती जांच में सामने आया है कि वर्ष 2018 में 2 फरवरी को लेखकों के खाने-पीने और किताबों के नाम पर 25417 रुपए का खर्चा दिखाया गया। यह राशि सेल्समैन कम क्लर्क ने ली थी और इसकी कोई स्वीकृति नहीं थी। इसके बाद 16 जुलाई को लेखकों के नाम पर ही 14009 रुपए का खर्च दिखाया और ड्राइवर प्रमोद कुमार के नाम पर चेक जारी कर दिया गया। इसके ठीक 3 दिन बाद फिर इसी प्रकार 8947 रुपए का खर्च दिखाया व सेवादार कपूरचंद के नाम चेक जारी हुआ। विजिलेंस जांच में कपूरचंद ने बताया कि उसे न तो चेक मिला और न उसने विड्राॅ कराया। उसने कोई सामान भी नहीं खरीदा है। यह बिल तत्कालीन निदेशक डॉ. नरेंद्र कुमार स्वयं लाए और उनके आदेश पर ही उसने बिलों पर हस्ताक्षर किए थे। यह चेक उन्होंने खुद अपने पास रख लिए। इस खर्चे की भी अनुमति नहीं ली गई।
18 जुलाई को लेखकों के खाने-पीने के नाम पर 1605 रुपए, 27436 रुपए और फिर 43,126 रुपए के तीन चेक जारी हुए। पहली दो राशि के चेक ड्राइवर प्रमोद कुमार के नाम जारी हुए। यह राशि भी तत्कालीन निदेशक ने ही निकलवाई। जबकि तीसरी राशि का चेक उन्होंने अपने खाते में जमा कराया। इसके अगले दिन 47,590 रुपए का खर्चा दिखा ड्राइवर के नाम चेक जारी हुआ। यह राशि भी पूर्व निदेशक के पास गई। 26 जुलाई को फिर 40,370 रुपए लेखकों के खाने-पीने और स्मृति चिन्ह खरीदने पर खर्च हुए। प्रमोद कुमार के नाम पर चेक जारी करके राशि निदेशक को दी गई। 7 सितंबर को भी 2010 रुपए का इसी प्रकार चेक जारी हुआ। अकादमी में 8 जनवरी को दिल्ली के ज्वैलर्स से 31,360 रुपए का सामान खरीदने की बात कही गई है और इसके बदले 31,360 रुपए दिए गए हैं किन्तु कोई भी सामान नहीं खरीदा गया।
पूर्व निदेशक ने 18 अक्टूबर 2018 को 1,02,492 रुपए का यात्रा भत्ता का चेक अपने निजी खाते में जमा कराया। बता दें कि इसकी सक्षम अधिकारी से कोई मंजूरी नहीं ली गई। इस भत्ते को लेकर वे विजिलेंस के सामने ठोस प्रमाण भी पेश नहीं कर पाए हैं। पूर्व निदेशक पर यह भी आरोप है कि उन्होंने बिना सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के मेडिकल बिल के 39,155 रुपए अपने खाते में जमा करवा लिए।