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हाथरस पीड़िता के बहाने समस्त नारियों का दर्द बतलाती है पूजा सर्वज्ञ की कविता ‘आज की नारी फिर भी दुखियारी’

आज की नारी फिर भी दुखियारी
हाँ मैं नारी हूँ, दुखियारी हूँ
मैं आज भी बेचारी हूँ!
सदियाँ बीती, बीते बरस
और बीते युग युगांतर
वेश बदला, परिवेश बदला
आया बहुत अंतर
कभी न बदली स्थिति मेरी
मैं वही द्रौपदी की सारी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, दुखियारी हूँ,
मैं आज भी बेचारी हूँ
है बेटा जन्मा, सुनकर
सबका सीना चौड़ा हो जाता है
लक्ष्मी आते ही घर में
सिर आज भी झुक जाता है
निभाती हूं हर किरदार,
सबका सहारा बनती हूँ
पर तोड़ दिया बूढ़े कंधों को,
मैं पिता की कैसी जिम्मेदारी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, दुखियारी हूँ,
मैं आज भी बेचारी हूँ
दबाया जाता, मसला जाता,
कुचला जाता जैसे रेत
अपने लगते थे जो कभी,
सुरक्षित रहे न आज वो खेत
काली, लक्ष्मी मानकर मुझको
घर- घर पूजा जाता है
हूँ सत्य समझती, सबकुछ जानती
मैं बस निर्भया की अवतारी हूँ
हाँ मैं नारी हूँ, दुखियारी हूँ,
मैं आज भी बेचारी हूँ
हूँ सृजन करता, अपनी छाती से दूध पिलाती हूँ
शरीर का कतरा – कतरा देकर तुमको मैं संवारती हूँ
जुबान क्यों काटी, कुछ न बिगड़ता,
एक बात तुम्हें बताती हूँ
एक हाथरस की है क्या हस्ती,
मैं तो आज पूरे देश की लाचारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ, दुखियारी हूँ,
मैं आज भी बेचारी हूँ
युवा कवयित्री : पूजा सर्वज्ञ
(नई दिल्ली)