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दुनिया के एकमात्र वकील जो 42 साल से लड़ रहे है संस्कृत भाषा में मुकदमा

देश में नई शिक्षा नीति की चर्चा के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था में भाषा को लेकर भी बहस शुरू हो चुकी है। देश में कुछ राज्य हिंदी भाषा को प्राथमिकता देते रहे हैं तो कुछ राज्य अंग्रेजी भाषा और अपनी अन्य प्रादेशिक भाषाओं की पैरवी करते नजर आ रहे हैं। विदित हो कि भारतीय न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा को एक विशेष स्थान मिला हुआ है किन्तु देश में एकमात्र ऐसे वकील हैं जो संस्कृत भाषा में वकालत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आचार्य श्याम उपाध्याय ऐसे वकील हैं जो ना अंग्रेजी में लिखते हैं ना ही हिंदी में। उन्होंने अपनी व्यावहारिक भाषा के रूप में संस्कृत भाषा को चुना हुआ है। पिछले 41 वर्षों से वह अपनी वकालत संस्कृत भाषा में ही करते हैं।
न्यायालय में वकालतनामा पेश करने की बात हो या शपथ पत्र, प्रार्थना पत्र आदि जमा करने की बात हो, एडवोकेट आचार्य श्याम उपाध्याय यह सभी काम संस्कृत भाषा में ही करते हैं। इतना ही नहीं, आचार्य जब कोर्ट में संस्कृत भाषा में जिरह करने लगते हैं तो विरोधी वकील के पास कोई जवाब नहीं होता है। आचार्य श्याम उपाध्याय की मानें तो वह 40 साल से संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इसी वजह से वे संस्कृत भाषा में ही मुकदमा लड़ते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से देववाणी के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सकता है। संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए प्रति वर्ष 4 सितम्बर को संस्कृत दिवस मनाते हैं और 50 अधिवक्ताओं को पुरस्कृत भी करते हैं।
शैक्षिक योग्यता के बारे में बात करें तो श्याम उपाध्याय संस्कृत में आचार्य और B.A.LLB किए हुए हैं। वह 1978 से वकालत कर रहे हैं और न्यायालय के सारे कामों को वह संस्कृत में ही करते हैं। आचार्य श्याम को संस्कृत की प्रारंभिक जानकारी उनके पिता स्वर्गीय संगठा प्रसाद उपाध्याय से ही मिली। संगठा प्रसाद उपाध्याय संस्कृत के बहुत अच्छे जानकार थे। घर में संस्कृत के प्रति लोगों में ज्यादा लगाव था। यही कारण है कि एडवोकेट श्याम उपाध्याय का भी देववाणी के प्रति प्रेम उभरता गया। आचार्य श्याम उपाध्याय उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के मूल निवासी हैं।
एडवोकेट आचार्य श्याम उपाध्याय काली कोट धारण करने के साथ माथे पर त्रिपुंड और तिलक लगाते हैं। इतना ही नहीं अपने पास केस लेकर आये लोगों को बड़ी ही सहजता के साथ संस्कृत में ही समझाते हैं। फिर संस्कृत में पत्र भी लिखते हैं। संस्कृत के प्रति आचार्य श्याम के अगाध प्रेम को देखते हुए भारत सरकार की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया गया है। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ० मुरली मनोहर जोशी ने देश भर के 25 संस्कृत मित्रों को पुरस्कृत किया था जिसमें एडवोकेट आचार्य श्याम उपाध्याय भी शामिल थे। संस्कृत में जिरह करने में आने वाली समस्या के प्रश्र पर एडवोकेट आचार्य श्याम उपाध्याय कहते हैं कि जब भाषा आ जाती है तो बोलने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती है।