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जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों में शत् प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद चूंकि अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बनाए जा चुके हैं। जिसके चलते केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए आरक्षण का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकारी नौकरियों में जम्मू कश्मीर के मूल निवासियों को ही 100 प्रतिशत आरक्षण देने वाले कानूनी प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने लद्दाख के याचिकाकर्ता वकील नजुमल हुदो को कहा है कि वो इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम की धारा 3A, 5A, 6, 7 और 8 को रद्द किया जाए, क्योंकि ये धाराएं भारत के संविधान की धारा 14, 16, 19, 21 का उल्लंघन करती हैं, क्योंकि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा अधिनियम की ये धाराएं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकारी नौकरियों में यहां के डोमिसाइल यानी कि यहां के मूल निवासियों को 100 फीसदी आरक्षण देती हैं। खारिज की गई याचिका में मांग की गई थी कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश समान रूप से सभी कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अधीन हैं जो देश के बाकी हिस्सों पर भी लागू होते हैं। इसलिए, यदि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में कोई भी आरक्षण डोमिसाइल के आधार पर दिया जाना है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 16 (3) के आधार पर ही दिया जा सकता है।
गौरतलब है कि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा अधिनियम की धारा 5A में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए तब तक योग्य नहीं होगा जब तक वह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का निवासी नहीं होगा, ये धारा संविधान की अनुच्छेद 16 (3) के समान अवसर की गारंटी के प्रावधान का उल्लंघन करता है। बता दें कि 31 मार्च को सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन आदेश 2020 जारी किया जिसके बाद जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा कानून में बदलाव हुआ। इस अधिनियम की धारा 5 ए में कहा गया है कि ग्रुप-4 के पद डोमिसाइल के लिए ही आरक्षित होंगे।