साहित्यहरियाणा

समाज की हर दहलीज पर ठहरती है ‘धनक’ की रचनाएं….

उम्र के छह दशक पूर्ण करने के बाद लेखन में सक्रिय हुईं राज श्री गौड़ का यह पहला काव्य संकलन है । ‘धनक’ काव्य संकलन छोटी-बड़ी बासठ कविताओं को संजोए हुए है । समाज-राजनीति, प्रकृति, परिवार के साथ प्रेम जैसे विषयों को भी अपनी कविताओं में कवयित्री ने न्यायपूर्वक स्थान दिया है । रचनाओं में समाज की रूढ़ियों पर आपत्ति जताते हुए परिवार में अपनी ममता की निरंतरता बनाए रखने का संतुलन कहीं न कहीं जीवन में कवयित्री के अनुभव की तरफदारी कर रहा है । कवयित्री ने एक विषय तक सीमित ना रहकर समाज के अनेक विषयों पर अपनी कलम चलाने का सफलतम प्रयास किया है।
समाज में रहते हुए अपने चारों ओर अनेक तरह की क्रियाएं देखने को मिलती हैं । इन क्रियाओं पर प्रतिक्रिया देना स्वाभाविक है । कवयित्री ने अपनी कलम के द्वारा समाज- राजनीति पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कविताएं लिखी हैं… ईद मुबारक; स्वाधीनता दिवस; नैतिक मूल्य; अभिमान हमारा हिंदी; आज़ादी का पर्व मनाएं; विदीर्ण ह्रदय मां; आओ कुछ ऐसी हवा चलाएं; मेरी नज़र में धर्म; और ये आग-सी क्यों है..??

✍️ बहती थी नदियां दूध की जिस धरा पर,
आज वहां बहती लहू-धार-सी क्यों है..??

अक्सर कहा जाता है कि रचनाकार बहुत भावुक इंसान होते हैं । मगर बहुत कम रचनाकार अपनी रचनाओं में अपने परिवार को स्थान दे पाते हैं । कवयित्री ने अपनों के बारे में जो भी महसूस किया, बस कागज़ पर उतार दिया । कागज़ पर भावनाओं से पूर्ण कविताएं हैं… मेरी लाड़ो; एक प्यारी मासूम परी; मेरे आंगन की चिड़िया; भर गई तन्हाई आज; मां; मेरी बेटी-मेरी दुनिया; पिता देव समान; मुट्ठी भर संस्कार…!

✍️ माता-पिता ही घर-मंदिर,ही होते हैं भगवान समान ।
घर ड्योढ़ी की शोभा तुम हो,पिता हमारे हैं अभिमान ।

हर रचनाकार प्रकृति के नज़दीक रहते हुए ही अपनी रचनाओं में परिपक्वता ला पाता है । और इन्हीं रचनाओं के माध्यम से प्रकृति को धन्यवाद देने की कोशिश भर करता है । धनक में कवयित्री द्वारा धन्यवाद हेतु रचित कविताएं हैं…. बसंत की आहट; बरसात; मन मेह-सा झरे; प्यासा पंछी; सरंक्षण हो वृक्षों का …!

✍️ संरक्षण हो वृक्षों का, है आवश्यक कर्म ।
वृक्षों का रोपण बढ़े, यही हमारा धर्म ।

प्रेम एक ऐसा विषय है जिसको प्रत्येक रचनाकार की कलम छूने का प्रयास जरूर करती है । प्रेम पर पहले भी बहुत लिखा गया है और पृथ्वी पर जीवन रहने तक निसंकोच लिखा जाता रहेगा । प्रेम में सुख-दुख दोनों तरह के भाव रहते हैं । इन्हीं भावों पर राजश्री की कलम से निकली हुई कविताएं….. रंजो ग़म का दिल से अपने; नज़र उसकी ख़फ़ा; इश्क करने वाले; अपनी तन्हाईयां यूं सजाते रहे; अभी जी रही हूं मैं; सच्चा दोस्त; याद रखना; एवं विदा चाहते हैं…!

✍️ है की जो ख़ता, तो सजावार हैं हम ।
मगर प्यार की, हम दवा चाहते हैं ।

धनक काव्य संकलन की विशेषता की बात की जाए तो कहा जा सकता है कि कविताओं में कहीं भी दिखावा नहीं है । कवयित्री ने जो भी महसूस किया है, उसे बस कागज़-कलम को सौंप दिया है । समाज में तीन पीढ़ियों को केंद्रित करते हुए बहुत मार्मिक कविताएं लिखी गई हैं तथा समाज में एक जागरूक नागरिक का परिचय देते हुए धर्म, दंगे, भाषा इत्यादि पर अपने विचारों को साहसपूर्ण शैली में बयां किया है । धनक में संकलित प्रेम पर रचित कविताओं की बात की जाए निसंकोच होकर कहा जा सकता है कि कवयित्री ने पवित्र प्रेम को अपने ह्रदय में स्थाश दिया हुआ है । इन कविताओं को हर आयु वर्ग का पाठक अपने परिवार के सामने बैठ कर पढ़ सकता है, यही उपलब्धि इन कविताओं की सफलता बयां कर रही है । काव्य संग्रह में संकलित कविताओं से समाज में एक सकारात्मक बदलाव आए और कवयित्री निरंतर अपनी कलम से पाठकों को विचारणीय रचनाएं सौंपती जाए , ईश्वर से यही प्रार्थना है । उम्र के इस पड़ाव पर साहित्य में सक्रिय होने पर कवयित्री साधुवाद के पात्र हैं ।

पुस्तक- धनक (काव्य संकलन)
कवयित्री- राजश्री गौड़
अंकित मूल्य- 75 रूपए
प्रकाशन- मंगलम् पब्लिकेशन (इलाहाबाद)
✍️ समीक्षा : दिनेश दिनकर
समीक्षा हेतू संपर्क करें: Livesamaybharat@gmail.com

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