साहित्यहरियाणा

व्यक्ति के संघर्ष और परिवार के बीच संतुलन का चित्रण करती है ‘एक अकेला मैं किसना’

‘एक अकेला मैं किसना’ शीर्षक पुस्तक में वरिष्ठ लेखिका ने तेरह कहानियों को भावनात्मक रूप से संकलित किया है । जीवन का संघर्ष, परिवारों की वास्तविक स्थिति, समाज का चित्रण, एक अलग तरह के प्रेम की अनुभूति और भाग्य का बोध कराती हुई इन कहानियों में लेखिका की कलम से निकले हर भाव को महसूस किया जा सकता है । अधिकतर कहानियां पाठक को सोचने पर विवश करती हैं कि हम अपनी इच्छा से जीवन जी रहे हैं या ईश्वर के हाथ की कठपुतली मात्र हैं । कुछ कहानियों के पात्रों की तरह एक पाठक वर्ग भी असमंजस में हैं कि उसका परिवार उसे भावनात्मक रूप से परिवार का अंग मानता भी है या नहीं । कुछ कहानियों में स्त्री-संघर्ष को सही ढंग से दिखाया गया है ।
एक अकेला मैं किसना शीर्षक कहानी में किसना नामक किरदार के माध्यम से लेखिका ने किस्मत की ठोस सच्चाई को समझाने का सफल प्रयास किया है । इस कहानी में किसना कुछ बेहतर पाने की चाहत में अपना घर बदलता है,शहर बदलता है, नौकरी बदलता है, मित्र-मंडली बदलता है किंतु अफसोस की बात है कि वह अपनी किस्मत नहीं बदल पाता है । हर प्रयास के बाद उसे परिणाम में निराशा ही मिलती है । दिन-रात परिश्रम करता है ताकि अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे सके, किंतु एक दिन जवान बेटी आत्महत्या कर लेती है, थक-हारकर अकेले बेटे से उम्मीद करने लगता है मगर बेटा अपनी जिंदगी-अपने सपनों में खोया हुआ रहता है । किसना को समझ ही नहीं आता कि आखिर वह कैसा जीवन जी रहा है । ‘जीवन संध्या’, ‘संघर्ष’ नामक कहानियों में आम आदमी अपने बुजुर्गो के जीवन के संघर्ष को महसूस कर सकता है और समझ सकता है कि उनके बड़े-बुजुर्गों द्वारा किन-किन कठिनाईयों का सामना करने के बाद आज समाज में उनका अपना वजूद बन पाया है ।

‘मुमताज’, ‘सुनीता’, ‘फोन की घंटी’, ‘भागो’, ‘बदलते रिश्ते’, इत्यादि कहानियों में लेखिका ने अपने अलग अंदाज में नारी संघर्ष का चित्रण करने का एक सफल प्रयास किया है । यह उनकी कलम की जीत ही कही जाएगी कि पाठक उन भावनाओं को महसूस कर पाया है , उनके दर्द को देख पाया है । इन कहानियों में रेखांकित नारी संघर्ष को घर-परिवार, पड़ोस, कार्यस्थल से लेकर समाज के हर तबके में देखा जा सकता है। मगर यहां पुरुष प्रधान समाज का अहंकार भी कहा जाएगा कि कोई इन यातनाओं के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता , कोई इन संघर्षशील महिलाओं की सहायता नहीं कर पाता ।
‘मैं फिर आऊंगी’, ‘राज’, ‘यादें’ शीर्षक कहानियों में प्रेम को वास्तविक रूप में दिखाया गया है कि प्रेम उम्र, जाति, धर्म और जीवन के आधार पर नहीं होता और प्रेम ना ही केवल स्त्री-पुरूष के मध्य का भाव होता है बल्कि परिवारों में भी प्रेम होता है । जब परिवार का हर सदस्य एक-दूसरे के प्रति प्रेम की भावना रखता है, तभी परिवार में खुशियों का आगमन हो पाता है , एक-दूसरे की सुरक्षा के प्रति जागरूकता आती है ।
जीवन के भावों को सहेजते हुए लेखिका सामान्य परिवारों के हर सदस्य के संघर्ष को कलमबद्ध करते हुए पुस्तक में संकलित एक कहानी ‘मामा का संस्कार’ के शीर्षक के साथ न्याय करने में असफल रही हैं । और कुछ कहानियों में शब्दों का क्रमबद्ध रूप ना होना प्रकाशन की कार्यशैली में कमी दर्शाता है । चूंकि लेखिका की यह पहली पुस्तक है, अतः इन बिंदुओं को नजरअंदाज करते हुए ‘एक अकेला मैं किसना’ को पढ़ा जा सकता है और मानव जीवन में भाव, संघर्ष, भाग्य, और समाज को समझा जा सकता है ।

पुस्तक:- एक अकेला मैं किसना (कहानी संग्रह)
लेखिका:- राज ख्यालिया
अंकित मूल्य:- 100 रूपए
प्रकाशन:- मंगलम् पब्लिकेशन (उत्तर प्रदेश)
✍️ समीक्षा :- दिनेश दिनकर
समीक्षा हेतू संपर्क सूत्र :- Livesamaybharat@gmail.com

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